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साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
सार-सार को गहि रहे, थोथा देई उड़ाय।
आज अमृतसर स्थित संत कबीर दास जी के मंदिर में उनकी जयंती के अवसर पर शीश नवाया और पुष्प अर्पित किए।
उनकी वाणी आज भी हमें सत्य, समरसता और साधना के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।

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