श्री रामचरितमानस में विराध प्रसंग
प्रभु श्री राम द्वारा निशाचर विराध-वध के प्रसंग को भक्त तुलसीदास जी चौपाई के चार चरणों में ही समेट देते हैं -
मिला असुर बिराध मग जाता। आवत हीं रघुबीर निपाता।।
तुरतहिं रुचिर रूप तेहिं पावा। देखि दुखी निज धाम पठावा।।
मार्ग में जाते हुए विराध राक्षस मिला। सामने आते ही श्री रघुवीर जी ने उसे मार डाला। (श्री राम जी के हाथ से मरते ही) उसने दिव्य रूप प्राप्त कर लिया। प्रभु ने उसे अपने परमधाम को भेज दिया।
रामचरितमानस में तुलसीदास जी बहुत से प्रसंगों का उल्लेख मात्र करते हैं। उसका पूरा विवरण प्रस्तुत नहीं करते। केवल प्रभु की कृपालुता एवं दयालुता का वर्णन करते हैं कि मांसभोजी असुर का भी प्रभु उद्धार कर देते हैं और उसे अपने परमधाम में भेज देते हैं।
