गलगोटिया यूनिवर्सिटी की भीड़ में अचानक किसी ने पीछे से पीठ पर हाथ रखा। मैं पलटा — कुछ 5-7 सेकंड तक दिमाग़ जैसे तस्वीरें खंगालता रहा, और तभी… वो मुस्कान, वो आवाज़ — एक पल में मुझे केंद्रीय विद्यालय सन् 2011 पहुँचा गई।
जितेश बाबू, अब गलगोटिया विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं। वही पुरानी सादगी, जिम्मेदारियों और अनुभव का गहरा मेल। दस मिनट में संसार भर की बातें करने के बाद अपने एग्जामिनेशन डिपार्टमेंट की ओर वो और मैं एडमिशन विभाग की तरफ़ निकल पड़े।।
