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रात की निस्तब्धता में जब अपने गांव की गलियों से होकर निकला, तो ऐसा लगा मानो हर मोड़ पर बचपन की कोई स्मृति मेरा इंतज़ार कर रही हो।
आज देर रात पीनानी में बोडियों, चाचियों और परिजनों के घर-घर जाकर उनका कुशलक्षेम जाना। वही अपनापन, वही स्नेहभरे नेत्र, वही आत्मीय मुस्कानें जैसे समय ने कोई दूरी रचने का साहस ही न किया हो।
यह कोई साधारण भेंट नहीं थी; यह उन भावनाओं का पुनरागमन था, जो शब्दों से नहीं, आत्मा की शांति और मौन की गहराई से व्यक्त होती हैं। अपनों का प्रेम, बुज़ुर्गों का आशीर्वाद और गांव की मिट्टी की सौंधी गंध यही तो है जीवन की सबसे बड़ी थाती।

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