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क्यों भगवान जगन्नाथ को लगाते हैं मालपुए का भोग❓❓
पुरी की जगन्नाथ रथ यात्रा भारत के सबसे भव्य और महत्वपूर्ण धार्मिक यात्रा है। यह पर्व हर साल आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को मनाया जाता है, जिसमें भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर जाते हैं। इस नौ दिवसीय यात्रा के दौरान भगवान को तरह-तरह के भोग लगाए जाते हैं, जिनमें मालपुआ का विशेष स्थान है॥
भगवान जगन्नाथ को मालपुआ बहुत ज्यादा प्रिय है, और यह परंपरा दशकों पुरानी है। रथ यात्रा के दिन, जब भगवान अपने भाई-बहन के साथ रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं, तो उन्हें विशेष रूप से मालपुए का भोग लगाया जाता है। यह मालपुआ केवल रथ यात्रा के दिन ही बनाया जाता है और भगवान को अर्पित करने के बाद भक्तों में बांटा जाता है।
खास बात यह है कि भगवान जगन्नाथ के लिए ये विशेष मालपुए छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले से लाकर चढ़ाए जाते हैं।
मालपुआ भगवान के प्रति प्रेम और समर्पण का प्रतीक है।
हिंदू धर्म में मालपुआ को समृद्धि और शुभ्रता का प्रतीक माना जाता है, किसी भी शुभ काम या त्योहार पर मालपुआ बनाना चढ़ाना शुभ माना जाता है।
ऐसा माना जाता है कि मालपुए का भोग भगवान के मन को खुश करता है और उनकी रथ यात्रा मंगलमय होती है। यह यात्रा एक लंबी और महत्वपूर्ण यात्रा है, और इस दौरान भगवान को उनका पसंदीदा भोजन जरूर चढ़ाना चाहिए।
भगवान और भक्तों के बीच का संबंध बहुत गहरा है।
मालपुआ जैसी पारंपरिक और घर में बनी मिठाई का भोग लगाने से रिश्तों में मधुरता आती है।
भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि परंपरा, प्रेम और भक्ति का एक साक्षात उदाहरण है। मालपुए का भोग इस यात्रा का एक अभिन्न अंग है, जो भक्तों की श्रद्धा और भगवान के प्रति उनके गहरे प्रेम को दर्शाता है।
इस प्रसाद को पाने के लिए भक्त घंटों भीड़ में खड़े रहते हैं, यह सिर्फ एक मिठाई नहीं, बल्कि भगवान का आशीर्वाद है॥
॥हवा की उल्टी दिशा में लहराती है जगन्नाथ मंदिर की पताका॥

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