पूरी दुनिया में 800 करोड़ लोग रहते हैं। आबादी के हिसाब से आधी से अधिक दुनिया ईसाई है और नंबर दो आबादी मुस्लिम धर्मावलंबियों की है।
इस आधार पर देखें तो तीसरे नंबर पर हिन्दू हैं। चौथे स्थान पर नास्तिक , पांचवें पर बौद्ध और छठे स्थान पर यहूदी प्लस अन्य अल्पसंख्यक हैं। यही वर्ग हैं जातियां हैं।
आज का एक एक शब्द बेहद महत्वपूर्ण है।
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नास्तिकों में कम्युनिस्ट हैं जो उन नेताओं को फॉलो करते हैं जो धर्म को अफीम बताते थे , धर्मगुरुओं को जड़ से मिटाते थे।
दूसरे का वजूद धरती से मिटाकर अपना धर्म स्थापित करने की होड़ कभी ईसाइयों में मची थी अब मुस्लिमों में मची है। वामपंथी विस्तारवादियों में चीन सबसे आगे है। रूस भी नास्तिक देशों में शामिल है।
ब्रिटेन, भारत, रुस, फ्रांस या अमेरिका
इस्लामिक विस्तारवादी हर जगह बिखरे हुए हैं। यह सत्य है , एक क्रूर सत्य। विस्तारवाद ने वास्तव में इक्कीसवीं शताब्दी के सामने बड़ी गंभीर समस्याएं पैदा कर दी हैं।
यह दुनिया ईसाई देशों और इस्लामिक देशों के बीच विभक्त है। इस दृष्टि से हिन्दू , बौद्ध और यहूदी धर्मावलंबी अल्पसंख्यकों की श्रेणी में आ गए हैं। संसार में हिंदुओं और यहूदियों के मात्र एक एक देश बचे हैं।
अनेक देश ऐसे हैं , जहां भारत में जन्मा बौद्ध धर्म उपजा। ध्यान से देखें तो शुद्ध बौद्धों का एक बहुत छोटा सा देश भूटान बचा है जिसे विशुद्ध बौद्ध देश कहा जा सकता है।
तिब्बत को हड़पने के बाद कम्युनिस्ट चाओ माओ ने बौद्धों को मारना काटना शुरू किया तो बौद्ध अपने मूल देश भारत आ बसे।
जापान , मलेशिया , इंडोनेशिया , कोरिया , वियतनाम , श्रीलंका , कम्पूचिया , थाईलैंड आदि में बौद्ध धर्म सिमटकर रह गया है। इनमें से दो देशों में इस्लाम का बोलबाला हो चुका है अलबत्ता हिन्दू संस्कृति बची हुई है।
इसी प्रकार तेरह देशों में अखंड आर्यावर्त भारतवर्ष सनातन हिन्दूधर्म था जो अब भारत से बाहर केवल नेपाल में बचा है।
2020 के अनुमानित आंकड़ों के अनुसार दुनिया में ईसाई 238 करोड़ , मुस्लिम 191 करोड़ , हिन्दू 116 करोड़ , बौद्ध 51 करोड़ और यहूदी 95 लाख हैं। कुछ अन्य छोटे छोटे और आदिवासी धर्म भी हैं जिनकी अनुमानित संख्या 5 करोड़ होगी।
चीन और रूस चूंकि नास्तिक देश हैं अतः उन्हें नहीं गिना गया है। उनकी अनुमानित संख्या मुसलमानों के समान 190 करोड़ आंकी गई है।
2020 की विश्व जनसांख्यिकी रिपोर्ट के मुताबिक सबसे तेजी से बढ़ती जनसंख्या मुसलमानों की है जो कुछ ही दशकों में ईसाइयों के वर्तमान 238 करोड़ तक पहुंच जाएगी या उसे भी पार कर जाएगी।
संकेत हैं कि विश्व में सबसे ज्यादा आबादी ईसाइयों को पार कर मुस्लिमों की हो जाएगी। ईसाइयों और हिंदुओं की आबादी विकास दर तेजी से घटने का अनुमान है। इसका कारण इन धर्मों में तेजी से फैल रही लिव इन , वन चाइल्ड और नो चाइल्ड अवधारणा।
सीधा सा मतलब समझिए...
दुनिया को 700 करोड़ से 800 करोड़ होने में ढाई दशकों का समय लगा। लेकिन आगे इस्लाम धर्मावलंबियों के अलावा सभी धर्मों का जनसंख्या बढ़ाव ठहराव मोड़ में आ जाएगा।
हिन्दू , ईसाई , बौद्ध और नास्तिकों में अधिकतम वन चाइल्ड पॉलिसी बढ़ने से 2050 तक का अरसा तय करेगा कि दुनिया का धार्मिक जातीय गणित क्या है।
आश्चर्य की एक और बात बताते चलें कि मुस्लिमों के 57 देशों में मुसलमानों की सर्वाधिक जनसंख्या भारत में होने का अनुमान है।
भारत में आखिरी कास्ट सेंसस 2011 में हुआ था। तब मुस्लिमों की संख्या 17.5 करोड़ बताई गई थी। बहु विवाह एवं तेजी से बढ़ती जनसंख्या अब 25 करोड़ को पार कर चुकी ऐसा अनुमान है।
वास्तविक संख्या तो 2027 में होने जाली जाति जनगणना के बाद ही पता चलेगी। आबादी का कहीं घटता और कहीं बढ़ता काल प्रवाह अनेक देशों की जाती विविधता बदल डालेगा यह अब तय हो गया है।
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