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"जब खेत में बैल नहीं मिले… तो 75 साल का बूढ़ा खुद बैल बन गया!" ये कोई फिल्म नहीं, महाराष्ट्र के लातूर ज़िले की हकीकत है। अंबादास पवार, जिनकी उम्र 75 साल है — अपनी हड्डियों से टूटे शरीर पर लकड़ी का हल बांधकर खुद खेत जोत रहे हैं।
वजह? खरीफ सीज़न शुरू हो गया है लेकिन बैल किराए पर लाने के लिए रोज़ के 2,500 रुपये नहीं हैं।
उनकी पत्नी मुक्ताबाई पीछे-पीछे चलती हैं, सूखी मिट्टी को अपने हाथों से मोड़ती हैं ताकि फसल की उम्मीद बाकी रहे...
धरती प्यास से फटी है… शरीर थकान से झुका है… लेकिन उम्मीद अब भी ज़िंदा है।
कपास की फसल बोनी है — चाहे खुद को कितना ही तोड़ना क्यों न पड़े।

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