वत्सला सिर्फ एक हथिनी नहीं थी, बल्कि एक पूरा एक युग थी।
साल 1971 में केरल के नीलांबुर जंगलों से लाई गई वत्सला को पहले नर्मदापुरम और फिर पन्ना टाइगर रिजर्व में बसाया गया। यहीं उसने अपने जीवन के अंतिम क्षण तक समय बिताया – एक सदी से भी ज़्यादा लंबी यात्रा में वत्सला जंगल की मां, दादी और साथी जैसी बन गई। वत्सला का स्वभाव शांत, स्नेहिल और ममतामयी था।
जब भी कोई बछड़ा जन्म लेता, वह दादी की तरह उसकी देखभाल करती थी। उसे रोज़ खैरैयां नाले पर नहलाया जाता, नरम दलिया दिया जाता और बहुत प्यार से उसकी सेवा होती। बढ़ती उम्र के कारण उसकी आंखों की रोशनी चली गई थी, लंबी दूरी तय नहीं कर पाती थी – लेकिन उसका हौसला कभी नहीं टूटा।
हाल ही में उसके आगे के पैरों के नाखूनों में चोट लग गई थी।
मंगलवार को वह नाले के पास बैठ गई और फिर उठ न सकी। वन विभाग के कर्मचारियों ने उसे उठाने की बहुत कोशिश की, लेकिन दोपहर करीब 1:30 बजे वत्सला ने अंतिम सांस ली।
