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ॐ नमः शिवाय 🔥🙏
भृंगी, जिन्हें भृंगी ऋषि या भृंगीरिटी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण और रोचक पात्र हैं। वे भगवान शिव के परम भक्त और उनके गणों में से एक माने जाते हैं। भृंगी की कहानी उनकी अनन्य भक्ति, उनकी अनोखी प्रकृति और शिव के प्रति उनके समर्पण के इर्द-गिर्द घूमती है।
भृंगी मूल रूप से एक महान तपस्वी और ऋषि थे, जिन्होंने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। उनकी भक्ति इतनी गहन थी कि वे केवल शिव को ही अपने आराध्य मानते थे और किसी अन्य देवी-देवता को महत्व नहीं देते थे। उनकी यह एकनिष्ठ भक्ति उनकी कहानी का केंद्रीय बिंदु है। भृंगी का नाम संस्कृत शब्द “भृंग” से लिया गया है, जिसका अर्थ है “भौंरा”। यह नाम उनकी प्रकृति और व्यवहार को दर्शाता है, क्योंकि भौंरे की तरह वे केवल शिव के प्रति आकर्षित थे, जैसे भौंरा केवल फूल के रस की ओर आकर्षित होता है।
कुछ कथाओं के अनुसार, भृंगी पहले एक मानव ऋषि थे, जिनका नाम शायद भृंगी नहीं था, लेकिन उनकी तपस्या और शिव के प्रति अनन्य भक्ति के कारण उन्हें यह नाम और विशेष स्थान प्राप्त हुआ। अन्य कथाओं में कहा जाता है कि भृंगी एक गंधर्व या दैवीय प्राणी थे, जो शिव के गण बन गए। उनकी उत्पत्ति के बारे में विभिन्न ग्रंथों में भिन्न-भिन्न विवरण मिलते हैं, लेकिन उनकी भक्ति की तीव्रता सभी कथाओं में समान है।
एक बार भृंगी, जो शिव जी के परम भक्त थे, कैलाश पर्वत पर भगवान शिव और देवी पार्वती के दर्शन करने गए। उस समय शिव और पार्वती एक साथ विराजमान थे। भृंगी ने केवल भगवान शिव को प्रणाम किया और पार्वती की ओर ध्यान नहीं दिया। यह देखकर पार्वती को आश्चर्य और क्रोध हुआ, क्योंकि वे शिव की अर्धांगिनी (पत्नी) थीं और शिव-शक्ति का संयुक्त रूप माना जाता है।
माँ पार्वती ने भृंगी से पूछा कि उन्होंने उन्हें प्रणाम क्यों नहीं किया। भृंगी ने उत्तर दिया कि उनकी भक्ति केवल भगवान शिव के प्रति है, क्योंकि वे उन्हें ही अपने एकमात्र आराध्य मानते हैं। यह सुनकर पार्वती क्रोधित हो गईं और उन्होंने भृंगी को यह समझाने की कोशिश की कि शिव और शक्ति (पार्वती) एक-दूसरे से अविभाज्य हैं। शिव बिना शक्ति के अधूरे हैं, और शक्ति बिना शिव के। लेकिन भृंगी अपनी जिद पर अड़े रहे।
माँ पार्वती ने भृंगी को उनकी एकनिष्ठता की कठिन परीक्षा लेने का निर्णय लिया। उन्होंने भृंगी को श्राप दिया कि उनका शरीर, जो माता (शक्ति) से उत्पन्न हुआ है, नष्ट हो जाए। श्राप के प्रभाव से भृंगी का शरीर कमजोर हो गया, और उनका मांस और रक्त गायब हो गया। वे केवल हड्डियों का ढांचा बनकर रह गए। फिर भी, भृंगी ने अपनी भक्ति नहीं छोड़ी और शिव की तपस्या जारी रखी।

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