कई हजार वर्ष पूर्व त्रेतायुग में अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट महाराज दिलीप थे। उन को कोई संतान नहीं थी.. एक बार वे पत्नी के साथ गुरु वशिष्ठ के आश्रम गए.. गुरु वशिष्ठ ने उनके अचानक आने का प्रयोजन पूछा.. तब राजा दिलीप ने उनसे अपने पुत्र प्राप्ति की इच्छा व्यक्त की और पुत्र पाने के लिए महर्षि से प्रार्थना की...!!
महर्षि ने ध्यान करके राजा के निःसंतान होने का कारण जान लिया.. उन्होंने राजा दिलीप से कहा “राजन ! आप देवराज इन्द्र से मिलकर जब स्वर्ग से पृथ्वी पर आ रहे थे तो आपने रास्ते में खड़ी कामधेनु को प्रणाम नहीं किया.. शीघ्रता में होने के कारण आपने कामधेनु को देखा ही नहीं.. कामधेनु ने आपको शाप दे दिया ..कि उनकी संतान की सेवा किये बिना आपको पुत्र नहीं होगा”।
