कन्हैया और उनका एक कौर भात
एक बार की बात है, द्वारका में भव्य भोज का आयोजन हुआ। रुक्मिणीजी ने सैकड़ों पकवान बनाए थे। सभी देवता, ऋषि-मुनि और अतिथि आमंत्रित थे। तभी द्वारपाल ने आकर कहा, “भगवान! एक वृद्ध ब्राह्मण आपसे मिलने आए हैं।”
भगवान कृष्ण तुरंत उठ खड़े हुए और बोले, “उन्हें आदरपूर्वक भीतर बुलाओ।”
थोड़ी देर में वह वृद्ध ब्राह्मण थाली में केवल एक कौर भात लेकर भगवान के पास पहुँचे और बोले, “मधुसूदन! मेरे पास आपको अर्पण करने के लिए केवल यही एक कौर भात है। कृपया इसे स्वीकार करें।”
भगवान ने बड़े प्रेम से वह एक कौर भात उठाकर खा लिया। तभी रुक्मिणीजी ने देखा कि भोज का सारा भोग अपने-आप अदृश्य हो गया। रुक्मिणीजी हैरान होकर भगवान से पूछने लगीं, “नाथ! यह क्या हुआ?”
भगवान मुस्कराकर बोले, “रुक्मिणी! वह वृद्ध ब्राह्मण पूरे प्रेम और श्रद्धा से अपना सब कुछ लेकर आया था। उसके एक कौर भात ने मुझे तृप्त कर दिया। जब प्रेम सच्चा हो, तो अर्पण की मात्रा नहीं देखी जाती।”
सीख
ईश्वर को प्रेम और भक्ति से अर्पण की गई छोटी-से-छोटी चीज़ भी स्वीकार्य होती है। सच्चे भावों का मूल्य प्रभु के लिए अन्न, धन और वैभव से अधिक है।
