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ओडिशा के कालाहांडी ज़िले के नुआपाड़ा गाँव से निकली आदिवासी युवती बिदु नायक की कहानी हौसले और संघर्ष की मिसाल है।

21 साल की बिदु के माता-पिता नरेंद्र नायक और प्रेमसिला नायक खेतों में मज़दूरी कर परिवार चलाते हैं। बचपन से ही बिदु ने अपने माँ-बाप के साथ खेतों में काम किया, लेकिन पढ़ाई को कभी नहीं छोड़ा।

गाँव के ही प्राथमिक विद्यालय से शिक्षा की शुरुआत की और आगे कण्याश्रम, दुलमिबांध से हाईस्कूल पूरा किया।

इसके बाद उन्होंने लांजीगढ़ के ST/SC हायर सेकेंडरी स्कूल से +2 की पढ़ाई की और साल 2024 में पूरे ब्लॉक की टॉपर बनीं। लेकिन आर्थिक तंगी इतनी गहरी थी कि आगे की पढ़ाई लगभग असंभव लग रही थी। मजबूरी में वो गाँव लौटीं और स्थानीय बच्चों को पढ़ाने लगीं, साथ ही खेतों में काम भी करती रहीं।

इसी बीच उनकी काबिलियत को पहचानकर उनकी रिश्तेदार लवण्या पुज्हारी ने मदद का हाथ बढ़ाया और उन्हें भुवनेश्वर भेजा ताकि वो NEET की तैयारी कर सकें। कड़ी मेहनत और परिवार के साथ के दम पर बिदु ने परीक्षा पास की और अब उन्होंने MKCG मेडिकल कॉलेज, ब्रह्मपुर में दाख़िला ले लिया है।

आज जब वो डॉक्टर बनने के सपने की ओर बढ़ रही हैं, पूरा इलाका उनकी कामयाबी पर गर्व महसूस कर रहा है। बिदु नायक ने यह दिखा दिया है कि हालात कितने भी कठिन क्यों न हों, अगर इरादा मजबूत हो तो सपनों तक पहुँचना नामुमकिन नहीं।

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