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ये अरविंद यादव है। इन्हें अपने दो छोटे बच्चों की स्कूल और ट्यूशन फीस के लिए 2000 रुपये की ज़रूरत थी।

ठेकेदार ने लालच दिया—“दो घंटे सीवर में उतरो, पैसे मिल जाएंगे।”

लेकिन अरविंद को ना ऑक्सीजन सिलेंडर दिया गया, ना हेलमेट, ना कोई सुरक्षा।

वह सीवर से ज़िंदा बाहर नहीं आ पाए।

आज उनकी पत्नी निशा और मासूम बच्चे न्याय और सहारे के बिना हैं।

सरकार बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स, मेट्रो, बुलेट ट्रेन और स्मार्ट सिटी पर अरबों खर्च करती है, लेकिन सीवर की सफाई के लिए मशीनें और मजदूरों की सुरक्षा पर खर्च नहीं कर पाती।

1993 से मैनुअल स्कैवेंजिंग कानूनन अपराध है। फिर भी हर साल सैकड़ों दलित मजदूर इसी तरह सीवर में दम तोड़ते हैं। अरविंद यादव की मौत एक हादसा नहीं, हत्या है।

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