नवरात्रि के चौथे दिन माता दुर्गा के चौथे स्वरूप माँ कूष्मांडा की पूजा की जाती है। माँ कूष्मांडा को सृष्टि की आदिशक्ति के रूप में जाना जाता है, क्योंकि उन्होंने अपनी हल्की मुस्कान से ही इस ब्रह्मांड की रचना की थी।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब सृष्टि नहीं थी और चारों ओर घना अंधकार था, तब किसी भी जीव का अस्तित्व नहीं था। इस शून्य में त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) ने आदिशक्ति माँ दुर्गा से सहायता मांगी। तब माँ दुर्गा ने अपने चौथे स्वरूप, माँ कूष्मांडा को प्रकट किया। उन्होंने अपनी मंद-मंद मुस्कान से इस ब्रह्मांड की रचना की और चारों ओर प्रकाश फैला दिया। माँ के इस स्वरूप को अष्टभुजा भी कहते हैं, क्योंकि उनकी आठ भुजाएं हैं। उनके हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र, गदा और जप माला सुशोभित हैं।
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