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थोड़ा सा समय निकाल कर जरूर पढ़ें 👇👇
पहले के समय में सुबह का मतलब था ताज़ी हवा, पेड़ों की सरसराहट और परिवार संग बैठकर चाय की चुस्की। लेकिन आज सुबह का मतलब है— लोकल ट्रेन ,भीड़ भरी बसें, ट्रैफिक का शोर, जल्दी दफ्तर पहुचनें या मीटिंग्स की लिस्ट और काम का दबाव। इस भागदौड़ में इंसान के पास इतना वक्त ही नहीं बचता कि वो खुद से या अपने परिवार से दो पल बैठ सके👇

शाम को काम से लौटते हुए चेहरों पर थकान साफ़ झलकती है। बच्चे घर में इंतज़ार करते हैं कि पापा या मम्मी आकर उनके साथ खेलेंगे, लेकिन थका हुआ शरीर और बोझिल दिमाग़ सिर्फ आराम चाहता है। यह दृश्य सोचकर दिल भारी हो जाता है कि जिन खुशियों के लिए हम भाग रहे हैं, उन्हीं खुशियों से हम दूर होते जा रहे हैं।👇👇

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