जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ की शीतल देवी ने दुनिया को दिखा दिया कि हौसले से बड़ी कोई ताकत नहीं होती। उन्होंने अपनी मेहनत और जज़्बे से पैरावर्ल्ड आर्चरी चैंपियनशिप में महिलाओं की कंपाउंड व्यक्तिगत स्पर्धा का स्वर्ण पदक जीत लिया। उन्होंने तुर्किये की विश्व नंबर 1 ओजनुर क्योर गिरदी को 146-143 से हराकर यह उपलब्धि हासिल की।
उनके पिता किसान हैं और मां बकरियां चराती हैं, लेकिन शीतल ने अपने हालातों को कभी बाधा नहीं बनने दिया।
जन्म से ही दोनों हाथ नहीं होने के बावजूद, उन्होंने पैरों से तीरंदाजी की। कुर्सी पर बैठकर अपने दाहिने पैर से धनुष उठाती हैं, कंधे और जबड़े की ताकत से तीर छोड़ती हैं। उनके इस अनोखे कौशल को देखकर हर कोई हैरान रह जाता है।
कटरा में कोच अभिलाषा चौधरी और कुलदीप वेदवान के मार्गदर्शन में उन्होंने तीरंदाजी की दुनिया में अपने कदम जमाए।
शीतल देवी का जन्म फोकोमेलिया नामक बीमारी के साथ हुआ था, जो एक दुर्लभ चिकित्सा स्थिति है, जिसके कारण हाथ नहीं होते। वह ऊपरी अंगों के बिना पहली और एकमात्र महिला पैरा-तीरंदाजी चैंपियन हैं।
शीतल देवी ने दिखा दिया कि असंभव कुछ भी नहीं है बल्कि कुछ करने के लिए सिर्फ़ हौसला चाहिए होता है!
