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चुनाव हारते ही इन दोनों के चेहरे ऐसे हो गए जैसे अभी-अभी कोई बड़ा रहस्य खुल गया हो। लेकिन फिक्र की बात नहीं है—मोदी जी और नीतीश जी ने इन पर इतना बड़ा एहसान किया है कि अब पूरे 5 साल का मौका दे दिया है, आराम से बैठकर “वोट चोरी का सबूत” ढूंढते रहो।
पिछले चुनाव में पाँच दिन तक ढूंढते रहे, कुछ नहीं मिला… अब पाँच साल मिल गए हैं, शायद इस बार कोई “अदृश्य सबूत” मिल जाए। जनता भी हंस रही है—काम कुछ नहीं, बस हार के बाद रोने के लिए बहानों का गोदाम तैयार।
इनकी राजनीति आजकल बस दो चीज़ों पर चलती है:
हार → आरोप → सबूत ढूंढने का ड्रामा।
और असलियत क्या?
सबूत कभी मिलता नहीं… और बहाने कभी खत्म नहीं होते।
डिस्क्लेमर: यह एक व्यंग्यात्मक राजनीतिक पोस्ट है। किसी व्यक्ति या पार्टी का अपमान उद्देश्य नहीं है।

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