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एक समय था जब एक छोटी-सी बच्ची बैडमिंटन कोर्ट पर बुनियादी शॉट्स भी सीखने में संघर्ष करती थी…
और आज वही बच्ची 2025 Tokyo Deaflympics में भारत की झंडा वाहक बनकर देश का नेतृत्व करने जा रही है।
ये हैं जर्लिन जेयररटचागन — साहस, अनुशासन और अटूट विश्वास की मिसाल।
मदुरै में जन्मी जर्लिन को दो साल की उम्र में सुनने-बोलने में कठिनाई का पता चला।
लेकिन उनके पिता ने उनकी क्षमता को सिर्फ एक कमी की नज़र से कभी नहीं देखा।
उन्होंने बेटी को बैडमिंटन कोर्ट पर ले जाकर पूछा— “खेलोगी?”
जर्लिन का हल्का-सा सिर हिलाना ही उनकी असाधारण यात्रा का पहला कदम बन गया।
आठ साल की उम्र में उन्होंने कोच पी. सरवनन के साथ प्रशिक्षण शुरू किया।
मौखिक निर्देश याद न रह पाने की वजह से जर्लिन ने खेल को एक अनोखे तरीके से सीखा—
हर टेक्निक, हर मूव स्लेट पर बनाकर, विज़ुअल क्लूज़ से।
और फिर—रोज़, बिना एक दिन छोड़े—कड़ी मेहनत।
सिर्फ 13 साल में उन्होंने Deaflympics का मैदान देखा।
और 2021 के Deaflympics में इतिहास लिख दिया—
महिला सिंगल्स, मिक्स्ड डबल्स और टीम इवेंट—तीनों में स्वर्ण पदक जीतकर।
इसके लिए 2022 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार मिला, यह सम्मान पाने वाली वह पहली भारतीय महिला Deaflympian बनीं।
आज जर्लिन फिर एक ऐतिहासिक पल में खड़ी हैं—
वह 2025 Tokyo Deaflympics में भारत की 111 सदस्यीय टीम की झंडा वाहक होंगी।
देश की इस अद्भुत बेटी को सलाम,
जिसने साबित किया कि सीमाएँ रास्ते रोक नहीं सकतीं—साहस उन्हें पार कर देता है।
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