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दोस्तोएव्स्की रूस का महान चिंतक, दार्शनिक और लेखक को कभी फाँसी की सज़ा सुनाई गई थी। ठीक छह बजे उसकी जीवन-रेखा समाप्त होनी थी। और छह बजने के पाँच मिनट पहले जार का संदेश आया कि उसे क्षमा कर दिया गया है।

बाद में दोस्तोएव्स्की बार-बार उस क्षण का ज़िक्र अपनी बहुत सी कहानियों में करते है।

वह कहते है जैसे-जैसे घड़ी छह के करीब पहुँच रही थी,
मेरे भीतर न कोई वासना थी,
न कोई इच्छा,
न कोई लालसा।
मन बिलकुल शांत हो गया था…
पूर्ण शून्य।
उसी क्षण मुझे पहली बार समझ आया
कि साधु-संत जिस समाधि की बात करते हैं,
वह क्या होती है।

लेकिन जैसे ही संदेश सुनाया गया कि सज़ा माफ़ हो गई है वह अचानक किसी ऊँचे शिखर से नीचे गिर पड़ा। एक क्षण पहले जो इच्छाएँ मर चुकी थीं, वे सब वापस लौट आईं।

पैर में जूता काट रहा था फिर उसी का एहसास होने लगा दिमाग में यह तक चलने लगा। कि अब नया जूता लेना है सब छोटे-छोटे क्षुद्र विचार। जो अभी कुछ क्षण पहले अस्तित्वहीन हो गए थे, फिर पूरी ताकत के साथ लौट आए।

दोस्तोएव्स्की कहते है “उस शिखर को मैं कभी दुबारा नहीं छू पाया। जो उस दिन, आसन्न मृत्यु के ठीक निकट, एक पल को घटित हो गया वह जीवन की सबसे अद्भुत और सबसे सच्ची अनुभूति थी।”

और हुआ क्या था?
बस इतना कि जब मृत्यु पूरी तरह सुनिश्चित हो जाती है, तो चेतना दुनिया से, इच्छाओं से, हर बंधन से स्वयं को मुक्त कर लेती है।

जीवन यात्रा... 🚶‍♂️

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