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दीपिका कर्नाटक के तुमकुरु के एक बेहद गरीब किसान परिवार से आती हैं, जहां बचपन में एक बीमारी या दुर्घटना के कारण उनकी आंखों की रोशनी पूरी तरह चली गई थी। घर की हालत इतनी खराब थी कि कई दिनों तक एक समय का खाना भी ठीक से नसीब नहीं होता था और इसी मजबूरी में उनके दोनों भाइयों को कॉलेज छोड़कर कमाने के लिए निकलना पड़ा। गांव में लोग अक्सर ताना देते थे कि नेत्रहीन होकर वह क्या कर लेंगी, लेकिन यही बातें दीपिका की सबसे बड़ी ताकत बन गईं। स्पेशल स्कूल में शिक्षकों ने उन्हें क्रिकेट से परिचित कराया और शुरू में हिचकिचाने के बावजूद धीरे-धीरे क्रिकेट उनके जीवन का जुनून और दिशा बन गया। संघर्षों और सामाजिक तानों के बीच खेलते-खेलते वह भारत की पहली नेत्रहीन महिला क्रिकेट टीम की कप्तान बनीं और श्रीलंका में आयोजित पहले T20 ब्लाइंड महिला विश्व कप में अपनी टीम को अपराजित रखते हुए खिताब दिलाया। फाइनल जीत के बाद उनका भावुक वाक्य सबके दिलों में बस गया—“गाँव में सब बोलते थे, तुम blind हो, तुम क्या कर सकती हो? आज हमने दिखा दिया हम क्या कर सकते हैं।” उनकी यह यात्रा गरीबी, अंधता और समाज की रूढ़ियों के खिलाफ खड़े होने वाली हर लड़की की उम्मीद बन गई।
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