मज़दूर के घर जन्मी खुशी ने बचपन से ही ठान लिया था कि हालात उसकी मंज़िल तय नहीं करेंगे। पापा दिहाड़ी पर काम करते और माँ घर संभालतीं, लेकिन तंगी के बीच भी बेटी के हौसले बड़े रहे।
कक्षा 9 से उसने स्वयं प्रोग्राम के ज़रिए आत्मरक्षा और वुशु की शुरुआत की। रोज़ साइकिल से दूर-दराज़ जाकर ट्रेनिंग लेना, पढ़ाई संभालना और प्रतियोगिताओं में भाग लेना—ये सब आसान नहीं था। पर मेहनत रंग लाई, उसने खेलो इंडिया और राष्ट्रीय स्तर पर कई मेडल जीते।
आज वही लड़की CISF की हेड कॉन्स्टेबल बनी है। उसकी कहानी साबित करती है कि संघर्ष चाहे जितना भी बड़ा हो, हौसला और लगन उससे कहीं ज़्यादा मज़बूत होते हैं।
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