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एक समय था जब छोटे कद और 72% विकलांगता के कारण, NEET में अच्छी रैंक होने के बावजूद किसी भी मेडिकल कॉलेज ने गणेश बारैया को एडमिशन देने से मना कर दिया। तीन फीट की हाइट, 14 किलो वज़न और बच्चों जैसी आवाज़—इन सबको ‘कमज़ोरी’ मानकर उन्हें अनफिट कहा गया। लेकिन गणेश ने खुद को कमज़ोर नहीं माना। हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक, उन्होंने अपने सपने के लिए पूरी ताकत और हिम्मत के साथ लड़ाई लड़ी।
आज वही लड़का, जिसकी काबिलियत पर एक समय शक किया गया था, MBBS पूरा कर चुका है और भावनगर मेडिकल कॉलेज में इंटर्नशिप कर रहा है।
डॉ. गणेश बारैया साबित करते हैं कि सपने कद से नहीं, हौसलों से बड़े होते हैं। यह सिर्फ़ उनकी जीत नहीं—हर उस इंसान की जीत है जिसे कभी कम आंका गया।
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