बाबूजी कल्याण सिंह —
जिन्होंने सत्ता की कुर्सी को राम की भक्ति से तौलकर हल्का पाया।
जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा दिया था,
फिर भी जब रामलला की पुकार आई,
तो उन्होंने अपना सबसे बड़ा बलिदान दे दिया —
मुख्यमंत्री पद से तत्क्षण इस्तीफ़ा।
उस दिन कल्याण सिंह ने सिद्ध कर दिया कि
राम के लिए सत्ता नहीं,
सत्ता के लिए राम नहीं —
राम ही सब कुछ हैं।
आज जब भव्य राममंदिर में रामलला विराजमान हैं,
तब भी हर ६ दिसंबर को हिंदू दिल से कहता है:
“बाबूजी, तुमने जो वचन दिया था,
वह पूरा हुआ।
तुमने कुर्सी छोड़ दी थी,
हमने मंदिर बना दिया।
जय श्री राम!