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धन्य धन्य वॊ क्षत्राणी
जिनकॊ वैभव नॆं पाला था
आ पड़ी आन पर जब,
सबनॆं जौहर कर डाला था
कल्मषता का काल-चक्र,
पलक झपकतॆ रॊका था
इतिहास गवाही दॆता है,
श्रृँगार अग्नि मॆं झॊंका था…

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