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नीचे जो वाक़या दिया गया है वो शायद इतिहास में कहीं दर्ज नहीं है, लेकिन प्रातः स्मरणीय द्वारा लड़े गए मेवाड़ की स्वतंत्रता की रण यात्रा में एसी अनगिनत घटनाओं से प्रातः स्मरणीय रूबरू हुए होंगे और दुद्धा जैसे अनगिनत भील योद्धा उनके संघर्ष के सारथी रहे होंगे।
👉 शीर्षक
12 साल का वह भील बालक 'दुद्धा', जिसने अपनी कटी कलाई से बलिदानी मेवाड़ के हर वर्ग की बलिदानी परम्परा को आगे बढ़ाया...
यह सिर्फ एक कहानी नहीं, यह बलिदान की वह धड़कन है जिसे पढ़कर आज भी अरावली की चट्टानें काँप उठती हैं।
👉 समय
जब महाराणा प्रताप अरावली की जंगलों में, मुगलों की घेराबंदी के बीच, अपने परिवार और स्वाभिमान की रक्षा कर रहे थे।
उस समय भील जनजाति का हर बच्चा, हर बूढ़ा, राणा के लिए ढाल बना हुआ था।
आज 12 साल के 'दुद्धा' की बारी थी, राणा जी तक भोजन पहुँचाने की।
घर में अन्न का एक दाना न था।
माँ पड़ोस से उधार का आटा लाई।
आँसुओं से सनी रोटियाँ सेंकीं और दुद्धा को पोटली थमाते हुए बोली— "जा बेटा… राणा जी भूखे नहीं रहने चाहिए। यह रोटियाँ नहीं, मेवाड़ की लाज है।"
दुद्धा ने पोटली को सीने से लगाया और हवा से बातें करता हुआ दौड़ पड़ा।
रास्ते में मुगलों ने घेर लिया।
एक ने तलवार का भरपूर वार किया।
दुद्धा की नन्हीं कलाई कटकर अलग जा गिरी। रक्त का फव्वारा फूट पड़ा।
लेकिन… हे एकलिंग नाथ! उस बालक का जिगर देखो!
उसने दर्द से कराहते हुए भी दूसरे हाथ से पोटली उठाई और अपनी कटी कलाई की परवाह किए बिना दौड़ता रहा। रक्त की धार उसके कदमों के निशान बना रही थी। उसकी आँखों में बस एक ही जिद थी— “राणा जी भूखे नहीं रहने चाहिए।”
वह राणा की गुफा तक पहुँचा और वहीं गिर पड़ा। उसने अपनी अंतिम साँसों को बटोर कर पुकारा— “रा…णा…जी!”
प्रताप बाहर आए। दृश्य देखकर उनका कलेजा मुँह को आ गया। सामने 12 साल का दुद्धा था, एक हाथ कटा हुआ, पूरा शरीर खून से लथपथ, पर दूसरे हाथ में रोटियों की पोटली सुरक्षित थी।
राणा ने उसका सिर गोद में रखा। दुद्धा ने काँपते होंठों से कहा— “अन्नदाता… ये रोटियाँ माँ ने भेजी हैं…”
प्रताप की आँखों से अविरल आँसू बह निकले। उन्होंने रुँधे गले से पूछा— “बेटा, इतना बड़ा संकट उठाने की क्या जरूरत थी?”
मरते हुए बालक ने जो उत्तर दिया, वह आज भी इतिहास में गूँजता है:
“अन्नदाता… आप चाहते तो महलों में रह सकते थे, पर आपने धर्म के लिए सब कुछ त्याग दिया। आपके उस महात्याग के आगे मेरा यह छोटा सा बलिदान कुछ भी नहीं…”
और यह कहते ही, वह नन्हा वीर मेवाड़ की उस पावन गोद में हमेशा के लिए सो गया।
उस दिन अरावली रो पड़ी थी,महाराणा प्रताप ने उस बालक के माथे को चूमते हुए कहा था— “धन्य है तेरी माँ, धन्य है यह माटी। जहाँ ऐसे वीर जन्म लेते हैं, वह धरती कभी गुलाम नहीं हो सकती।
आज हमारा सीना गर्व से चौड़ा है तो ऐसे ही अज्ञात वीरों के बलिदानों के कारण।
अगर इस कहानी ने आपकी आँखें नम की हैं, तो इस नन्हे बलिदानी 'दुद्धा' के सम्मान में कमेंट में 'जय महाराणा प्रताप' और 'जय वीर दुद्धा' अवश्य लिखें।

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