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हमारी मातृभाषा की असली पहचान! 💬
इस तस्वीर में जो बात कही गई है, वह आज के दौर की सबसे बड़ी सच्चाई है! 💔 हम अक्सर 'पढ़े-लिखे' लोगों को देखते हैं जो अपनी जड़ों से दूर भागते हैं। उन्हें हिंदी, संस्कृत या अपनी मातृभाषा में बात करने में 'शर्म' महसूस होती है। उन्हें लगता है कि अंग्रेजी में बोलना ही 'आधुनिकता' की निशानी है।
लेकिन ज़रा सोचिए! हमारे गांवों में, उन घरों में, जहाँ शायद औपचारिक शिक्षा की रोशनी कम पहुँची है, वहीं हमारी संस्कृति, हमारे संस्कार और हमारी मातृभाषा आज भी उसी शुद्धता के साथ जीवित है। 🙏 यह वो लोग हैं जिन्होंने बिना किसी डिग्री के हमारी भाषा के सम्मान को बचाए रखा है।
जब यह बुजुर्ग व्यक्ति कहते हैं कि "अनपढ़ लोगों की वजह से ही हमारी मातृभाषा बची हुई है साहब, वरना पढ़े हुए कुछ लोग तो राम राम बोलने में भी शरमाते हैं", तो यह केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि हमारी पीढ़ी को जगाने वाला एक अलार्म है। ⏰
हमारा विकास तभी पूरा होगा जब हम अपनी ज़मीन से जुड़े रहेंगे। अपनी जड़ों को पहचानिए, अपनी भाषा को गर्व से बोलिए! आइए, इस संदेश को वायरल करें और हर उस व्यक्ति तक पहुँचाएँ जो अपनी पहचान को भूल रहा है।
क्या आप सहमत हैं? कमेंट में 'जय हिंदी' या 'जय राम' लिखकर अपनी बात कहें! 👇
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