कक्षा 10 से पहले आंचल भाठेजा की आँखों की रौशनी चली गई, लेकिन उन्होंने कभी अपने सपनों को अंधेरे में नहीं जाने दिया। उन्होंने न सिर्फ कक्षा 12 में टॉप किया, बल्कि नेशनल लॉ स्कूल, बेंगलुरु में पहली नेत्रहीन छात्रा बनकर दाखिला लिया और ऑनर्स के साथ ग्रेजुएशन पूरा किया।
6 जून 2025 को आंचल ने इतिहास रच दिया, जब वह भारत के सर्वोच्च न्यायालय में बहस करने वाली पहली नेत्रहीन महिला वकील बनीं। यह सिर्फ एक कानूनी बहस नहीं थी, बल्कि हर उस सोच को चुनौती थी जो अक्षमता को कमजोरी मानती है।
आंचल की कहानी बताती है कि दिव्यांगता असमर्थता नहीं होती। यह साहस, जिद और लगातार आगे बढ़ते रहने की कहानी है। उन्होंने साबित कर दिया कि सीमाएं हालात बनाते हैं, इंसान नहीं।
आंचल भाठेजा आज लाखों लोगों के लिए उम्मीद और हौसले की मिसाल हैं।
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