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“साहब, मेरे पास दिल्ली आने के पैसे नहीं हैं, कृपया पद्मश्री डाक से भेज दीजिए” - यह बात कहने वाले कोई आम व्यक्ति नहीं, बल्कि ओडिशा के मशहूर लोक कवि हलधर नाग थे। 2016 में साहित्य के क्षेत्र में योगदान के लिए पद्मश्री पाने वाले हलधर नाग की सादगी ने पूरे देश को सोचने पर मजबूर कर दिया।
सफेद धोती, गमछा, बनियान और नंगे पांव जब वह राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से सम्मान लेने पहुंचे, तो हर आंख ठहर गई। गरीबी, संघर्ष और साधना की यह मिसाल ओडिशा के बरगढ़ जिले से निकली थी। 10 साल की उम्र में माता पिता को खोने के बाद पढ़ाई छूटी, ढाबे में जूठे बर्तन धोए, स्कूल में बावर्ची बने और छोटी सी स्टेशनरी दुकान चलाई।
लेकिन लिखना नहीं छोड़ा। 1990 में पहली कविता छपी और फिर कोसली भाषा में 20 महाकाव्य रचे, जो आज भी उन्हें शब्दशः याद हैं।
यह कहानी बताती है कि सच्ची दौलत शब्दों की शक्ति, स्मृति की साधना और जमीन से जुड़ी रचनात्मकता होती है। हलधर नाग ने साबित किया है कि गरीबी कभी प्रतिभा की सीमा नहीं बनती।
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