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1857 की क्रांति में तात्या टोपे ने अंग्रेज़ों की नाक में दम कर दिया। लेकिन ग्वालियर के राजा ने 500 रुपए में पकड़वा दिया। 18 अप्रैल 1859 को शिवपुरी में फांसी दी गई। उनका आखिरी शब्द था "मैं अपराधी नहीं, सेनानी हूँ।
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