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मुश्किलों को हराकर सफलता की कहानी लिखने वाले लोग अक्सर हमें प्रेरणा देते हैं, लेकिन कुछ कहानियां ऐसी होती हैं जो हमारे दिल को छू लेती हैं। ऐसी ही एक कहानी है नागा नरेश करुतुरा की।
उनकी कहानी बताती है कि अगर मेहनत की जाए, तो बुरी से बुरी परिस्थियों में खुद को निखारा जा सकता है। आंध्र प्रदेश के एक छोटे से गांव से ताल्लुक रखने वाले नागा ने परिस्थितियों का सामना करते हुए न सिर्फ मुश्किलों को हराया बल्कि आसमान की बुलंदियों को छू लिया है और गूगल में नौकरी हासिल की..
नागा नरेश बेहद ही समान्य मिडिल क्लास परिवार से आते हैं, उनके माता-पिता, दोनों अशिक्षित हैं लेकिन अपने बेटे को पढ़ाने के लिए उन्होंने कई सपने देखें और मेहनत भी की। उनके सपनों को ब्रेक तब लगा जब 1993 में संक्रांति उत्सव के दौरान नागा नरेश के घायल हो गए और दोनों पैर गंवाने पड़ें।
लेकिन नागा नरेश के अंदर आत्मविश्वास भरपूर था जिसकी बदौलत उन्होंने आगे बढ़ने और लड़ने का फैसला किया।
इस सफर में शिक्षा उनकी ताकत बनी।
नरेश ने IIT-JEE की परीक्षा में ऑल इंडिया रैंक 992 हासिल की और फिजिकल रूप से विकलांग कैटेगरी में चौथा स्थान प्राप्त किया है। इस कामयाबी ने IIT मद्रास के दरवाजे खोल दिए । उनके सफर में कई लोग उनकी काबिलियत देखकर मदद के लिए आगे आएं, किसी ने हॉस्टल की फीस भरी तो किसी ने इलाज के लिए पैसे दिए।
नागा ने हर मौके हर मदद का सम्मान किया, एल्गोरिदम, कंप्यूटर साइंस और गेम थ्योरी के प्रति उनके जुनून के कारण उन्हें मॉर्गन स्टेनली और गूगल जैसी कंपनी से नौकरी के ऑफर मिलें। आखिरकार उन्होंने गूगल के साथ काम करना चुना और इस मुकाम तक पहुंच कर कईयों के लिए प्रेरणा बन गए।
उनकी सफलता बताती है कि अगर कोशिश पूरे दिल से की जाए तो रास्ते की हर बाधा अपने आप कम हो जाती है।
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