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दीपिका कक्कड़ ने हाल ही अपने व्लॉग में बताया कि उन्होंने 6 घंटे खाली पेट रहकर अपना PET स्कैन करवाया, जो उनके लिए जितना शारीरिक रूप से थकाने वाला था, उतना ही मानसिक रूप से डराने वाला भी। वह कहती हैं कि भले ही रिपोर्ट्स ठीक आने की उम्मीद हो, लेकिन स्कैन रूम की ठंड, मशीन की आवाज़ और हर कुछ मिनट पर नर्स की हिदायतें उन्हें बार‑बार याद दिलाती रहीं कि वह कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रही हैं। इतने समय तक ना कुछ खा पाना, ना पानी पीना, और ऊपर से कॉन्ट्रास्ट डाई की चुभन ने इस पूरे प्रोसेस को और मुश्किल बना दिया।
PET स्कैन यानी पॉज़िट्रॉन इमिशन टोमोग्राफी, कैंसर मरीजों के लिए इसलिए अहम है क्योंकि यह शरीर के उन हिस्सों का भी हाल दिखा देता है जहां सामान्य स्कैन में गड़बड़ पकड़ में नहीं आती। डॉक्टर इस टेस्ट की मदद से देखते हैं कि ट्यूमर सिर्फ उसी जगह है जहां से बीमारी शुरू हुई थी या फिर वह दूसरे अंगों तक फैल चुका है। स्टेजिंग, सही इलाज चुनने और आगे की कीमोथेरेपी या रेडिएशन की ज़रूरत तय करने में यह स्कैन बड़ा रोल निभाता है, इसलिए कई मामलों में डॉक्टर इसे “रोडमैप टेस्ट” कहकर समझाते हैं।
दीपिका का मानना है कि हर कैंसर मरीज के लिए यह टेस्ट उतना ही ज़रूरी है जितना शुरुआत में बायोप्सी, क्योंकि बिना सही तस्वीर के डॉक्टर केवल अंदाज़े के सहारे इलाज नहीं कर सकते। वह अपने अनुभव से समझाती हैं कि रिपोर्ट में सिर्फ एक लाइन लिखी होती है, लेकिन उसके पीछे घंटों की भूख, डर और उम्मीद छुपी होती है जिसे सिर्फ वही समझ सकता है जो इस रास्ते से गुज़रा हो। उनकी अपील है कि अगर डॉक्टर PET स्कैन कराने को कहें, तो घबराकर टालें नहीं, बल्कि इसे अपनी सेहत के लिए निवेश मानें।
वह फैंस से यह भी कहती हैं कि कैंसर मरीजों के लिए सबसे बड़ा सहारा तकनीक के साथ‑साथ उनका भावनात्मक सपोर्ट होता है। अस्पताल की लंबी कतारों, इंश्योरेंस की टेंशन और दवाइयों के साइड इफेक्ट के बीच अगर परिवार ये समझ ले कि PET स्कैन जैसी जांचें सिर्फ बीमारी ढूंढने के लिए नहीं, बल्कि सही रास्ता दिखाने के लिए हैं, तो मरीज का आधा डर वहीं खत्म हो जाता है। दीपिका चाहती हैं कि उनकी कहानी सुनकर कोई भी व्यक्ति पेट दर्द, थकान या अजीब लक्षणों को हल्के में न ले और समय पर जांच कराए, ताकि ज़िंदगी को दूसरे मौका देने का मौका मिल सके।

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