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उत्तराखंड की मिट्टी में जन्मे मुरली दिवान जी जैसे लोक कलाकार हमारी असली धरोहर हैं।
UNESCO की Endangered सूची में शामिल गढ़वाली भाषा को उन्होंने अपनी कविताओं, व्यंग्य और लोक-बोली से न सिर्फ ज़िंदा रखा, बल्कि लोगों को हँसाया, सोचने पर मजबूर किया और संस्कृति से जोड़े रखा।
दुख की बात है कि ऐसे कलाकारों को वो सम्मान और प्रोत्साहन नहीं मिला, जिसके वे सच में हकदार हैं।
सरकार और समाज – दोनों की जिम्मेदारी है कि लोकभाषा और लोककलाकारों को संरक्षण व सम्मान मिले।
"जेन चरखा तागू नी देखी, तै ई सी ऊन दियोड़ा
जेमा पौधी माया पड़ीं, तै ई सी लुन दियोड़ा"
यह सिर्फ पंक्तियाँ नहीं, हमारी पीढ़ियों की सोच और संवेदना है।
ऐसे कलाकारों को भूलना, अपनी जड़ों को भूलने जैसा है।
🙏 लोकभाषा बचाइए, लोक कलाकारों को सम्मान दिलाइए।
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