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वर्ष का अंतिम सप्ताह: क्रिसमस की खुशी या गुरु गोविंद सिहं के बलिदान पर शोक?
ये जो सप्ताह अभी चल रहा है (21 दिसम्बर से लेकर 27 दिसम्बर तक) इन्ही 7 दिनों में गुरु गोबिंद सिंह जी का पूरा परिवार शहीद हो गया था। 21 दिसम्बर को गुरू गोविंद सिंह द्वारा परिवार सहित आनंदपुर साहिब किला छोङने से लेकर 27 दिसम्बर तक के इतिहास को हम भूला बैठे हैं?
एक ज़माना था जब यहाँ पंजाब में इस हफ्ते सब लोग ज़मीन पर सोते थे क्योंकि माता गूजर कौर ने वो रात दोनों छोटे साहिबजादों (जोरावर सिंह व फतेह सिंह) के साथ, नवाब वजीर खां की गिरफ्त में – सरहिन्द के किले में – ठंडी बुर्ज में गुजारी थी। यह सप्ताह सिख इतिहास में शोक का सप्ताह होता है।
पर आज देखते हैं कि पंजाब समेत पूरा हिन्दुस्तान क्रिसमस के जश्न में डूबा हुआ है एक दूसरे को बधाई दी जा रही हैं
गुरु गोबिंद सिंह जी की कुर्बानियों को इस अहसान फरामोश मुल्क ने सिर्फ 300 साल में भुला दिया??
जो कौमें अपना इतिहास – अपनी कुर्बानियाँ – भूल जाती हैं वो खुद इतिहास बन जाती है।
आज हर भारतीय को विशेषतः युवाओं व बच्चों को इस जानकारी से अवगत कराना जरुरी है। हर भारतीय को क्रिसमस नही, हिन्दुस्थान के हिन्दू शहजादों को याद करना चाहिये।
यह निर्णय आप ही को करना है कि 25 दिसंबर (क्रिसमस) को महात्त्वता मिलनी चाहिए या फिर क़ुरबानी की इस अनोखी.. शायद दुनिया की इकलौती मिसाल को
21 दिसंबर:
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने परिवार सहित श्री आनंद पुर साहिब का किला छोड़ा।
22 दिसंबर:
गुरु साहिब अपने दोनों बड़े पुत्रों सहित चमकौर के मैदान में पहुंचे और गुरु साहिब की माता और छोटे दोनों साहिबजादों को गंगू नामक ब्राह्मण जो कभी गुरु घर का रसोइया था उन्हें अपने साथ अपने घर ले आया।
चमकौर की जंग शुरू और दुश्मनों से जूझते हुए गुरु साहिब के बड़े साहिबजादे श्री अजीत सिंह उम्र महज 17 वर्ष और छोटे साहिबजादे श्री जुझार सिंह उम्र महज 14 वर्ष अपने 11 अन्य साथियों सहित मजहब और मुल्क की रक्षा के लिए वीरगति को प्राप्त हुए।

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