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29 दिसम्बर/इतिहास-स्मृति
लंदन में गुरु गोविंद सिंहजी का जन्मोत्सव
जो लोग काम-धंधे या अन्य किसी कारण से विदेश में बस जाते हैं, वे लम्बा समय बीतने पर प्रायः अपनी भाषा-बोली, रीति-रिवाज खान-पान और धर्म-कर्म आदि भूल जाते हैं। गुलामी के काल में इंग्लैंड निवासी अधिकांश भारतीय और हिन्दुओं की यही हालत थी। ऐसे माहौल में जुलाई 1906 में वीर विनायक दामोदर सावरकर बैरिस्टरी की पढ़ाई करने के लिए लंदन पहुंचे। वे वहां स्वाधीनता सेनानी पंडित श्यामजी कृष्ण वर्मा के ‘इंडिया हाउस’ में रहते थे। वहां रहकर उन्होंने जहां स्वाधीनता संग्राम में कई तरह से योगदान किया, वहां देश और धर्म के लिए बलिदान होने वाले वीरों की जयंती और पुण्य-तिथि आदि मनाकर भारत से गये हिन्दुओं में भी जागृति लाने का प्रयास किया।
इसी क्रम में 29 दिसम्बर, 1908 को लंदन के प्रसिद्ध ‘कैक्स्टन हाॅल’ में खालसा पंथ के संस्थापक श्री गुरु गोविंद सिंहजी का जन्मोत्सव मनाया गया। खराब मौसम के बावजूद इसमें हिन्दुओं और सिखों के अलावा कई अंग्रेज, मुसलमान और पारसी भी शामिल हुए। सभा स्थल पर गुलाबी रंग के एक भव्य झंडे पर ‘देग तेग फतह’ लिखा था। गुलाबी पृष्ठभूमि पर ये शब्द बहुत अच्छे लग रहे थे। एक बैनर पर Honour to the secred memory of Shree Guru Govind Singh के नीचे Prophet, Poet and warrior लिखा था। सभागार धूपबत्ती और ताजे पुष्पों की सुगंध से महक रहा था। श्वेत राष्ट्रीय झंडियों से वातावरण में पवित्रता व्याप्त हो गयी।
समारोह की अध्यक्षता स्वाधीनता सेनानी श्री विपिनचंद्र पाल ने की। उनके मंचासीन होने पर ‘राष्ट्रगीत’ हुआ। फिर ‘बंगाली आमार देश’ तथा ‘मराठी प्रियकर हिन्दुस्थान’ गीत गाये गये। इसी क्रम में दो सिख युवाओं ने धार्मिक प्रार्थना बोली। पहले वक्ता प्रोफेसर गोकुलचंद नारंग एम.ए. (दयानंद काॅलेज) ने अपने आवेशयुक्त भाषण में कहा कि गुरु गोविंद सिंहजी का स्मरण हिन्दुओं के मन में अभिमान, प्रेम, आत्मनिष्ठा और पूज्यता का भाव भर देता है। ईसाई लोगों के मन में ईसा मसीह का नाम लेने से जो मनोभावना उत्पन्न होती है, केवल उसी से इसकी तुलना हो सकती है।
दूसरे वक्ता स्वाधीनता सेनानी लाला लाजपतराय थे। उन्होंने कहा कि गुरु गोविंद सिंहजी हिन्दुस्थान की महान विभूति थे। पंजाब में तो वे अनन्य थे ही। उनके चार छोटे बच्चे शत्रु के रोष की बलि चढ़ गये। गुरुजी वास्तव में सिंह थे। अध्यक्ष विपिन चंद्र पाल ने गुरुजी को याद करते हुए कि उन्होंने मानव की दैवी शक्ति का विकास करने का प्रयास किया। आज भारत में जिसे नयी जागृति या नया पक्ष आदि कहा जा रहा है, वह कुछ नया नहीं है।

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