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"देखो। मुर्दा बहा चला जा रहा है।" चिता की अग्नि में भुनी मछली खाते हुए अघोराचार्य कालूराम ने गंगा में बहती लाश को दिखा कर कहा। मंद स्मित के साथ महाराज श्री कीनाराम ने कहा,"कहां महाराज? जीवित है।" "जीवित है तो बुलाओ।" आदेशात्मक स्वर में बाबा कालूराम बोल उठे। अभिमंत्रित अक्षत गंगा की ओर फेंकते हुए तत्काल ही महाराज श्री ने मुर्दे को ललकारा, "इधर आ!" और सहज ही टिकठी में बँधा वह मुर्दा किनारे आ लगा।
"ले राम नाम जिस राम नाम में है सारी कुदरत का खेला" यह कहते हुए जैसे ही महाराज श्री नेअभिमंत्रित जल मुर्दे के ऊपर डाला वह तत्काल उठ कर खड़ा हो गया। महाराज श्री ने घुड़क कर कहा। "देख क्या रहा है? अपने घर जा।" परंतु भाग्य की करनी देख, घर पहुंचने पर उसके अपने सगे संबंधी ही अमंगल की आशंका से उससे दूर भागने लगे। हार कर उसकी बूढ़ी मां उसे लेकर महाराज श्री के समक्ष उपस्थित हुई। "महाराज आपने ही इसे जीवन दिया है, सो आज से यह आप का हुआ। अब आप ही इसके माता-पिता हैं।" महाराजश्री कीनाराम ठठाकर हंस पड़े। बोले "जा माई निश्चिंत रह!" बालक की ओर स्नेहपूर्ण दृष्टि से देखते हुए बोले, " जिसको राम जिलाए सो रामजियावन कहलाए!" और पुनः दोनों अघोराचार्य। खिलखिला कर हंस पड़े। " रामजियावन राम! उठाओ चिता की लकड़ियां और चलो धूनी पर!" नवजीवन पाये युवक को निर्देशित कर पुनः दत्तात्रेय स्वरूप अघोरेश्वर श्री कालूराम को लक्ष्य कर महाराज श्री कीनाराम ने विनयपूर्वक कहा " महाराज! कब तक खिलवाड़ करेंगे! चलिए अपने स्थान पर।" अधरों पर सहज मुस्कान तथा नेत्रों में स्वीकृति का भाव लिए हुए अघोरेश्वर श्री कालूराम उठ खड़े हुए।
" कालांतर में यही रामजियावनराम क्रीं कुंड अघोरपीठ के दूसरे पीठाधीश्वर हुए । ....... चलो आज कथा को यही विश्राम देते हैं।" मानो अलसाते हुए बूढ़े अवधूत ने नव दीक्षित किशोर से कहा। कथा के प्रवाह में खोया किशोर मानो अचानक किसी तंद्रा से जागा। उसके मुख के भावों से स्पष्ट मालूम देता था कि यूँ कथा का अचानक रुक जाना उसे अच्छा नहीं लगा। पर गुरु से से हठ भी तो नहीं कर सकता। यूं तो उन को कभी सोते नहीं देखा था परंतु रात्रि में बाबा को अधिकतर एकांत ही प्रिय था। हां, कभी मौज चढ़ी तो रात भर मुक्की लगवाते थे। और कहानी सुनते सुनाते सो अलग। आगे सुनने की लालच से थोड़ी ढिठाई कर पूछ ही बैठा, सरकार आज मुक्की नहीं लगवाएंगे? बालक के इस निर्दोष सयानेपन पर बाबा को हंसी आ गई पर अनमनेपन का अभिनय करते हुए से बोले, "ना आज मन ना हौ। जा, तुहूँ सोवऽ।"
"जी" मुंह लटकाए किशोर ने उत्तर दिया और जाने को हुआ। "कुछ पूछै के रहल?" कुटी के द्वार तक पहुंचा ही था कि बाबा ने पूछा। छोकरे की आँखें चमक उठीं और हामी में उस ने मुंडी हिला दी। पूछ ल, नाहीं त रात भर सुताई ना लगी (नींद नहीं आयेगी) । प्रश्न तो मन में बहुतेरे थे पर फिर भी समय देखते हुये किशोर ने एक ही जिज्ञासा सामने रखी। बाबा सब कहते हैं कि अघोर मार्ग में शिव और भगवती ही प्रधान उपास्य देव हैं फिर ये अपनी परम्परा में सब के नाम के अंत में राम का नाम क्यूँ जुड़ा रहता है... महाराज श्री कीनाराम, कालूराम से ले कर आप त

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"देखो। मुर्दा बहा चला जा रहा है।" चिता की अग्नि में भुनी मछली खाते हुए अघोराचार्य कालूराम ने गंगा में बहती लाश को दिखा कर कहा। मंद स्मित के साथ महाराज श्री कीनाराम ने कहा,"कहां महाराज? जीवित है।" "जीवित है तो बुलाओ।" आदेशात्मक स्वर में बाबा कालूराम बोल उठे। अभिमंत्रित अक्षत गंगा की ओर फेंकते हुए तत्काल ही महाराज श्री ने मुर्दे को ललकारा, "इधर आ!" और सहज ही टिकठी में बँधा वह मुर्दा किनारे आ लगा।
"ले राम नाम जिस राम नाम में है सारी कुदरत का खेला" यह कहते हुए जैसे ही महाराज श्री नेअभिमंत्रित जल मुर्दे के ऊपर डाला वह तत्काल उठ कर खड़ा हो गया। महाराज श्री ने घुड़क कर कहा। "देख क्या रहा है? अपने घर जा।" परंतु भाग्य की करनी देख, घर पहुंचने पर उसके अपने सगे संबंधी ही अमंगल की आशंका से उससे दूर भागने लगे। हार कर उसकी बूढ़ी मां उसे लेकर महाराज श्री के समक्ष उपस्थित हुई। "महाराज आपने ही इसे जीवन दिया है, सो आज से यह आप का हुआ। अब आप ही इसके माता-पिता हैं।" महाराजश्री कीनाराम ठठाकर हंस पड़े। बोले "जा माई निश्चिंत रह!" बालक की ओर स्नेहपूर्ण दृष्टि से देखते हुए बोले, " जिसको राम जिलाए सो रामजियावन कहलाए!" और पुनः दोनों अघोराचार्य। खिलखिला कर हंस पड़े। " रामजियावन राम! उठाओ चिता की लकड़ियां और चलो धूनी पर!" नवजीवन पाये युवक को निर्देशित कर पुनः दत्तात्रेय स्वरूप अघोरेश्वर श्री कालूराम को लक्ष्य कर महाराज श्री कीनाराम ने विनयपूर्वक कहा " महाराज! कब तक खिलवाड़ करेंगे! चलिए अपने स्थान पर।" अधरों पर सहज मुस्कान तथा नेत्रों में स्वीकृति का भाव लिए हुए अघोरेश्वर श्री कालूराम उठ खड़े हुए।
" कालांतर में यही रामजियावनराम क्रीं कुंड अघोरपीठ के दूसरे पीठाधीश्वर हुए । ....... चलो आज कथा को यही विश्राम देते हैं।" मानो अलसाते हुए बूढ़े अवधूत ने नव दीक्षित किशोर से कहा। कथा के प्रवाह में खोया किशोर मानो अचानक किसी तंद्रा से जागा। उसके मुख के भावों से स्पष्ट मालूम देता था कि यूँ कथा का अचानक रुक जाना उसे अच्छा नहीं लगा। पर गुरु से से हठ भी तो नहीं कर सकता। यूं तो उन को कभी सोते नहीं देखा था परंतु रात्रि में बाबा को अधिकतर एकांत ही प्रिय था। हां, कभी मौज चढ़ी तो रात भर मुक्की लगवाते थे। और कहानी सुनते सुनाते सो अलग। आगे सुनने की लालच से थोड़ी ढिठाई कर पूछ ही बैठा, सरकार आज मुक्की नहीं लगवाएंगे? बालक के इस निर्दोष सयानेपन पर बाबा को हंसी आ गई पर अनमनेपन का अभिनय करते हुए से बोले, "ना आज मन ना हौ। जा, तुहूँ सोवऽ।"
"जी" मुंह लटकाए किशोर ने उत्तर दिया और जाने को हुआ। "कुछ पूछै के रहल?" कुटी के द्वार तक पहुंचा ही था कि बाबा ने पूछा। छोकरे की आँखें चमक उठीं और हामी में उस ने मुंडी हिला दी। पूछ ल, नाहीं त रात भर सुताई ना लगी (नींद नहीं आयेगी) । प्रश्न तो मन में बहुतेरे थे पर फिर भी समय देखते हुये किशोर ने एक ही जिज्ञासा सामने रखी। बाबा सब कहते हैं कि अघोर मार्ग में शिव और भगवती ही प्रधान उपास्य देव हैं फिर ये अपनी परम्परा में सब के नाम के अंत में राम का नाम क्यूँ जुड़ा रहता है... महाराज श्री कीनाराम, कालूराम से ले कर आप त

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"देखो। मुर्दा बहा चला जा रहा है।" चिता की अग्नि में भुनी मछली खाते हुए अघोराचार्य कालूराम ने गंगा में बहती लाश को दिखा कर कहा। मंद स्मित के साथ महाराज श्री कीनाराम ने कहा,"कहां महाराज? जीवित है।" "जीवित है तो बुलाओ।" आदेशात्मक स्वर में बाबा कालूराम बोल उठे। अभिमंत्रित अक्षत गंगा की ओर फेंकते हुए तत्काल ही महाराज श्री ने मुर्दे को ललकारा, "इधर आ!" और सहज ही टिकठी में बँधा वह मुर्दा किनारे आ लगा।
"ले राम नाम जिस राम नाम में है सारी कुदरत का खेला" यह कहते हुए जैसे ही महाराज श्री नेअभिमंत्रित जल मुर्दे के ऊपर डाला वह तत्काल उठ कर खड़ा हो गया। महाराज श्री ने घुड़क कर कहा। "देख क्या रहा है? अपने घर जा।" परंतु भाग्य की करनी देख, घर पहुंचने पर उसके अपने सगे संबंधी ही अमंगल की आशंका से उससे दूर भागने लगे। हार कर उसकी बूढ़ी मां उसे लेकर महाराज श्री के समक्ष उपस्थित हुई। "महाराज आपने ही इसे जीवन दिया है, सो आज से यह आप का हुआ। अब आप ही इसके माता-पिता हैं।" महाराजश्री कीनाराम ठठाकर हंस पड़े। बोले "जा माई निश्चिंत रह!" बालक की ओर स्नेहपूर्ण दृष्टि से देखते हुए बोले, " जिसको राम जिलाए सो रामजियावन कहलाए!" और पुनः दोनों अघोराचार्य। खिलखिला कर हंस पड़े। " रामजियावन राम! उठाओ चिता की लकड़ियां और चलो धूनी पर!" नवजीवन पाये युवक को निर्देशित कर पुनः दत्तात्रेय स्वरूप अघोरेश्वर श्री कालूराम को लक्ष्य कर महाराज श्री कीनाराम ने विनयपूर्वक कहा " महाराज! कब तक खिलवाड़ करेंगे! चलिए अपने स्थान पर।" अधरों पर सहज मुस्कान तथा नेत्रों में स्वीकृति का भाव लिए हुए अघोरेश्वर श्री कालूराम उठ खड़े हुए।
" कालांतर में यही रामजियावनराम क्रीं कुंड अघोरपीठ के दूसरे पीठाधीश्वर हुए । ....... चलो आज कथा को यही विश्राम देते हैं।" मानो अलसाते हुए बूढ़े अवधूत ने नव दीक्षित किशोर से कहा। कथा के प्रवाह में खोया किशोर मानो अचानक किसी तंद्रा से जागा। उसके मुख के भावों से स्पष्ट मालूम देता था कि यूँ कथा का अचानक रुक जाना उसे अच्छा नहीं लगा। पर गुरु से से हठ भी तो नहीं कर सकता। यूं तो उन को कभी सोते नहीं देखा था परंतु रात्रि में बाबा को अधिकतर एकांत ही प्रिय था। हां, कभी मौज चढ़ी तो रात भर मुक्की लगवाते थे। और कहानी सुनते सुनाते सो अलग। आगे सुनने की लालच से थोड़ी ढिठाई कर पूछ ही बैठा, सरकार आज मुक्की नहीं लगवाएंगे? बालक के इस निर्दोष सयानेपन पर बाबा को हंसी आ गई पर अनमनेपन का अभिनय करते हुए से बोले, "ना आज मन ना हौ। जा, तुहूँ सोवऽ।"
"जी" मुंह लटकाए किशोर ने उत्तर दिया और जाने को हुआ। "कुछ पूछै के रहल?" कुटी के द्वार तक पहुंचा ही था कि बाबा ने पूछा। छोकरे की आँखें चमक उठीं और हामी में उस ने मुंडी हिला दी। पूछ ल, नाहीं त रात भर सुताई ना लगी (नींद नहीं आयेगी) । प्रश्न तो मन में बहुतेरे थे पर फिर भी समय देखते हुये किशोर ने एक ही जिज्ञासा सामने रखी। बाबा सब कहते हैं कि अघोर मार्ग में शिव और भगवती ही प्रधान उपास्य देव हैं फिर ये अपनी परम्परा में सब के नाम के अंत में राम का नाम क्यूँ जुड़ा रहता है... महाराज श्री कीनाराम, कालूराम से ले कर आप त

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इच्छा शक्ति हो तो बिना संसाधनों के भी अच्छा प्रयास किया जा सकता है

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waltkowalskisbehavior nuovo articolo creato
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What is the most useful Roblox executor for Android? | #hydrogen executor

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यदा कदा बेपरवाह, बेअदब, बेअंदाज, बेतकल्लुफ या बेवकूफ दिखना सचमुच, छुटपन नहीं होता बल्कि हमारी विनम्रता का संसर्ग होता है...
अक्सर, लोकबाग में प्रेमीजनों का यही व्यवहार मानव उर में सुंदरता का द्योतक है क्योंकि धरती पर वही बादल बरसते हैं जो नीर में सिरमौर और झुकने का हुनर जानते हैं।यही वसन्त के प्रणेता कहलाते हैं।

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मैंने कश्मीर में जीसस की कब्र देखी है। वे सूली पर नहीं मरे थे। यह एक षड़यंत्र था, जिसमें जानबूझकर देर की गई।
जीसस को शुक्रवार के दिन सूली दी गई थी। शुक्रवार के बाद तीन दिन तक यहूदी कोई कार्य नहीं करते थे, इसलिए पान्टियस पायलट ने शुक्रवार का दिन चुना था और जीसस को सूली देने में जितना विलंब किया जा सकता था, उतना विलंब किया गया।
और तुमको पता होना चाहिए कि यहूदियों का सूली देने का ढंग ऐसा है कि इसमें किसी भी व्यक्ति को मरने में 48 घंटे का समय लगता है। क्योंकि जिस व्यक्ति को सूली दी जाती है, उसे वे गरदन से नहीं लटकाते हैं।
व्यक्ति के हाथों व पैरों पर कीलें ठोंक दी जाती हैं, जिस कारण बूंद-बूंद कर खून टपकता रहता है। इस प्रकार एक स्वस्थ व्यक्ति को मरने में 48 घंटे का समय लग जाता है।
और जीसस की आयु मात्र 33 वर्ष थी...पूर्णतया स्वस्थ। वे छह घंटों में नहीं मर सकते थे। कभी कोई छह घंटों में नहीं मरा। लेकिन शुक्रवार का सूरज डूबने लगा था, अतः उनके शरीर को नीचे उतारा गया। क्योंकि नियमानुसार 3 दिन तक कोई कार्य नहीं होना था।
और यही षड़यंत्र था। उन्हें एक गुफा में रखा गया, जहां से उन्हें चुरा लिया गया और वह बच निकले। इसके पश्चात जीसस काश्मीर (भारत) में ही रहे। यह कोई खास बात नहीं है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू की नाक, इंदिरा गांधी की नाक यहूदियों जैसी है।
हजरत मूसा की मृत्यु काश्मीर में हुई। और जीसस भी काश्मीर में मरे। जीसस बहुत लंबे समय तक जीए। 112 वर्ष की आयु में उन्होंने शरीर छोड़ा।
मैं उनकी कब्र पर गया हूं। आज भी इस कब्र की देखभाल एक यहूदी परिवार करता है। काश्मीर में यही एकमात्र ऐसी कब्र है, जो मक्का की दिया में पड़ती है। अन्य सभी कब्रें वहां मुसलमानों की हैं।
मुसलमान मृतकों के लिए कब्र इस तरह बनाते हैं कि कब्र में मृतक का सिर मक्का की दिया में हो। काश्मीर में केवल दो कब्रें ऐसी हैं, एक जीसस की और दूसरी मूसा की, जिनका सिरहाना मक्का की ओर नहीं। और कब्र पर जो लिखा है वह स्पष्ट है।
यह हिब्रू भाषा में है। और जिस "जीसस' नाम के तुम अभ्यस्त हो गए हो, वह उनका नाम नहीं था। यह नाम ग्रीक भाषा से रूपांतरित होकर आया है। उसका नाम जोसुआ था।
और अभी भी उस कब्र पर यह सुस्पष्ट रूप से लिखा हुआ है कि महान धर्म शिक्षक जोसुआ जूडिया से यात्रा कर यहां आए। वे वहां 112 वर्ष की आयु में मरे, तथा दफनाए गए।
लेकिन यह अजीब बात है कि सारे पश्चिमी जगत को मैंने यह बताया है, फिर भी पश्चिम से एक भी ईसाई यहां आकर इस कब्र को नहीं देखना चाहता है। क्योंकि यह उनके पुनर्जीविन के सिद्धांत को बिलकुल गलत सिद्ध कर देगा.
और मैंने उनसे पूछा कि यदि वे फिर से जीवित हो उठे थे तो वे कब मरे? तुम साबित करो, तुम्हें साबित करना होगा। निश्चय ही बाद में उनकी मृत्यु हुई होगी.
अन्यथा वे अभी भी यहीं कहीं घूमते होते। उनके पास जीसस की मृत्यु का कोई विवरण नहीं है।
(फिर अमरित की बूंद पड़ीं) सद्गुरु ओशो।।

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जो घोषित ज्ञानी है वहीं महा अज्ञानी है
और जो अज्ञानी है वो तो अज्ञानी है ही..।।
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इस बार तो कांग्रेस ने ही #संजीवनी की
व्यवस्था कर दी है बजरंग दल के लिए....
बहुत सारे लोगों की शिकायत थी कि नरेंद्र मोदी के
प्रधानमंत्री रहते, हिंदू संगठनों को किनारे लगा दिया गया।
90 के दशक में बजरंग दल युवाओं का एक मजबूत, प्रभावशाली संगठन था।
बजरंग दल को संगठित और मजबूत बनाया था अशोक सिंघल जी ने। उन्होंने विनय कटियार को इसका अध्यक्ष बनाया था।
बजरंग दल सुरक्षात्मक रणनीति से अधिक आक्रमकता पर विश्वास करता था। जैसा कि अशोक सिंघल ने उसे मंत्र दिया था।
'यदि कोई पूंछ में आग लगायेगा तो हम पूरा महल फूंक देंगें।'
अशोक सिंघल के जाते ही, बजरंग दल कमजोर पड़ने लगा। संघ प्रमुख भागवत के आने के बाद (जो उदारवादी छवि रखते है) बजरंग दल और कमजोर पड़ गया।
सदस्यों की संख्या घटने लगी। कभी कभी गोरक्षा, वेलंटाइन डे आदि के विरोध से अपनी उपस्थिति दर्ज कराते थे। ऐसा बहुत से पत्रकारों का मानना था कि बजरंग दल, स्वेदशी जागरण मंच जैसे संगठनों को अपनी सरकार की छवि के लिये नरेंद्र मोदी ने दंतविहीन किया है।
भाजपा के लिये दक्षिण का द्वार कहे जाने वाले राज्य कर्नाटक चुनाव ने बजरंग दल को पुनर्जीवित कर दिया है।
यह काम भाजपा ने नहीं, कांग्रेस ने किया है। कांग्रेस के कट्टर समर्थक पत्रकार भी हैरान हैं। कांग्रेस ने घोषणा पत्र में बजरंगदल को प्रतिबिंबित करने का वादा किया।
पहली बात तो यही है कि बजरंगदल, अलग से कोई संगठन नहीं है। वह विश्व हिन्दू परिषद की एक इकाई है।
दूसरी बात यह है कि यदि यह मान भी लिया जाए कि बजरंग दल का कोई सदस्य हिंसा में लिप्त था, तो कांग्रेस के हजारों सदस्य हिंसा में लिप्त रहे हैं। 84 के दंगे में उसके बड़े बड़े नेता हिंसा में लिप्त पाए गए।
फिर कांग्रेस को भी क्या प्रतिबंधित कर दिया जाय ??
लेकिन बात यह नहीं है। कांग्रेस "हिंदू विरोधी मानसिकता" से निकल नहीं पाती है।
पिछले चुनाव में उसने लिंगायतों को हिंदू धर्म से अलग करने का वादा किया था।
बजरंगदल पर प्रतिबंध के वादे को प्रधानमंत्री ने तुरंत पकड़ लिया। अपनी रैलियों में बजरंगबली के जयकारे लगवाये।
इससे घबराकर कांग्रेस के डी शिव कुमार अब कह रहे हैं कि कांग्रेस सत्ता में आई तो पूरे कर्नाटक में हनुमान मंदिर बनेंगे।
लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि यह मुद्दा, जिसे साम्प्रदायिक कहा जा रहा है, उसको किसने उठाया, उठाया ही नहीं बल्कि घोषणापत्र में शामिल किया।
ताजा सर्वे कहते हैं कि इससे भाजपा ने बढ़त बना ली है।
चुनाव में क्या होगा, यह तो पता नहीं लेकिन कांग्रेस ने बजरंगदल को जीवित अवश्य कर दिया। उनके सदस्यों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। पूरे देश में बजरंगदल विरोध कर रहा है।
कम से कम बजरंगदल के लिये कांग्रेस का घोषणापत्र संजीवनी का काम किया है।

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