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जिस व्यक्ति ने अपनी आयु के 20 वे वर्ष में पेशवाई के सूत्र संभाले हों,||
40 वर्ष तक के कार्यकाल में 42 युद्ध लड़े हों और सभी जीते हों यानि जो सदा "अपराजेय" रहा हो,||
जिसके एक युद्ध को अमेरिका जैसा राष्ट्र अपने सैनिकों को पाठ्यक्रम के रूप में पढ़ा रहा हो ..ऐसे 'परमवीर' को आप क्या कहेंगे ...?
आप उसे नाम नहीं दे पाएंगे ..क्योंकि आपका उससे परिचय ही नहीं,||
सन 18 अगस्त सन् 1700 में जन्मे उस महान पराक्रमी पेशवा का नाम है -
" बाजीराव पेशवा "||
"अगर मुझे पहुँचने में देर हो गई तो इतिहास लिखेगा कि एक राजपूत ने मदद मांगी और ब्राह्मण भोजन करता
रहा||"
ऐसा कहते हुए भोजन की थाली छोड़कर बाजीराव अपनी सेना के साथ राजा छत्रसाल की मदद को बिजली की गति से दौड़ पड़े,||
धरती के महानतम योद्धाओं में से एक , अद्वितीय , अपराजेय और अनुपम योद्धा थे बाजीराव बल्लाल,||
छत्रपति शिवाजी महाराज का हिन्दवी स्वराज का सपना जिसे पूरा कर दिखाया तो सिर्फ - बाजीराव बल्लाल भट्ट जी ने,||
अटक से कटक तक , कन्याकुमारी से सागरमाथा तक केसरिया लहराने का और हिंदू स्वराज लाने के सपने को पूरा किया पेशवा 'बाजीराव प्रथम' ने,||
इतिहास में शुमार अहम घटनाओं में एक यह भी है कि दस दिन की दूरी बाजीराव ने केवल पांच सौ घोड़ों के साथ 48 घंटे में पूरी की, बिना रुके, बिना थके,||
देश के इतिहास में ये अब तक दो आक्रमण ही सबसे तेज माने गए हैं,||
एक अकबर का फतेहपुर से गुजरात के विद्रोह को दबाने के लिए नौ दिन के अंदर वापस गुजरात जाकर हमला करना और दूसरा बाजीराव का दिल्ली पर हमला,||
बाजीराव दिल्ली तक चढ़ आए थे,||
आज जहां तालकटोरा स्टेडियम है, वहां बाजीराव ने डेरा डाल दिया,||
उन्नीस-बीस साल के उस युवा ने मुगल ताकत को दिल्ली और उसके आसपास तक समेट दिया था,||
तीन दिन तक दिल्ली को बंधक बनाकर रखा,||
मुगल बादशाह की लाल किले से बाहर निकलने की हिम्मत ही नहीं हुई,||
यहां तक कि 12वां मुगल बादशाह और औरंगजेब का नाती दिल्ली से बाहर भागने ही वाला था कि उसके लोगों ने बताया कि जान से मार दिए गए तो सल्तनत खत्म हो जाएगी,||
वह लाल किले के अंदर ही किसी अति गुप्त तहखाने में छिप गया,||
बाजीराव मुगलों को अपनी ताकत दिखाकर वापस लौट गए,||
हिंदुस्तान के इतिहास के बाजीराव बल्लाल अकेले ऐसे योद्धा थे जिन्होंने अपनी मात्र 40 वर्ष की आयु में 42 बड़े युद्ध लड़े और एक भी नहीं हारे,||
अपराजेय , अद्वितीय,||
बाजीराव बिजली की गति से तेज आक्रमण शैली की कला में निपुण थे जिसे देखकर दुश्मनों के हौसले पस्त हो जाते थे,||
बाजीराव हर हिंदू राजा के लिए आधी रात मदद करने को भी सदैव तैयार रहते थे,||
पूरे देश का बादशाह एक हिंदू हो, ये उनके जीवन का लक्ष्य था,||
आप लोग कभी वाराणसी जाएंगे तो उनके नाम का एक घाट पाएंगे, जो खुद बाजीराव ने सन 1735 में बनवाया था,||
दिल्ली के बिरला मंदिर में जाएंगे तो उनकी एक मूर्ति पाएंगे,||
कच्छ में जाएंगे तो उनका बनाया 'आइना महल' पाएंगे", पूना में 'मस्तानी महल' और 'शनिवार बाड़ा' पाएंगे,||
अगर बाजीराव बल्लाल , लू लगने के कारण कम उम्र में ना चल बसते , तो , ना तो अहमद शाह अब्दाली या नादिर शाह हावी हो पाते और ना ही अंग्रेज और पुर्तगालियों जैसी पश्चिमी ताकतें भारत पर राज कर पातीं,||
28अप्रैल सन् 1740 को उस पराक्रमी "अपराजेय" योद्धा ने मध्यप्रदेश में सनावद के पास रावेरखेड़ी में प्राणोत्सर्ग किया |
ऐसी ही ना जाने कितने ही सुनेहरा इतिहास वामपंथीयों ने छिपा दिया है या बदल दिया है,
जय श्री राम
🙏🚩

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Vilitra 20 - Keep Your Relationship Pleasant

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Many men have problems with erectile dysfunction (ED). The vilitra 20 is the best solution. This drug contains a substance called vardenafil. This drug is taken to increase blood flow to the penis. This drug should be taken by men over 18 years of age. Take this medicine 45 minutes before intercourse so that you can enjoy intercourse with your partner. The effect of this medicine lasts for 4 to 6 hours. It is better to take this medicine on a prescription as advised by the doctor and avoid taking alcohol and fatty food if you take the pill. To know more information about the tablet visit pharmev.com.

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आम आदमी पार्टी ने मध्यप्रदेश की 230 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है। आप की घोषणा के बाद बीजेपी और कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

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एक ट्रेन द्रुत गति से दौड़ रही थी। ट्रेन अंग्रेजों से भरी हुई थी। उसी ट्रेन के एक डिब्बे में अंग्रेजों के साथ एक भारतीय भी बैठा हुआ था।
डिब्बा अंग्रेजों से खचाखच भरा हुआ था। वे सभी उस भारतीय का मजाक उड़ाते जा रहे थे। कोई कह रहा था, देखो कौन नमूना ट्रेन में बैठ गया, तो कोई उनकी वेश-भूषा देखकर उन्हें गंवार कहकर हँस रहा था।कोई तो इतने गुस्से में था कि ट्रेन को कोसकर चिल्ला रहा था, एक भारतीय को ट्रेन मे चढ़ने क्यों दिया ? इसे डिब्बे से उतारो।
किँतु उस धोती-कुर्ता, काला कोट एवं सिर पर पगड़ी पहने शख्स पर इसका कोई प्रभाव नही पड़ा।वह शांत गम्भीर भाव लिये बैठा था, मानो किसी उधेड़-बुन मे लगा हो।
ट्रेन द्रुत गति से दौड़े जा रही थी औऱ अंग्रेजों का उस भारतीय का उपहास, अपमान भी उसी गति से जारी था।किन्तु यकायक वह शख्स सीट से उठा और जोर से चिल्लाया "ट्रेन रोको"।कोई कुछ समझ पाता उसके पूर्व ही उसने ट्रेन की जंजीर खींच दी।ट्रेन रुक गईं।
अब तो जैसे अंग्रेजों का गुस्सा फूट पड़ा।सभी उसको गालियां दे रहे थे।गंवार, जाहिल जितने भी शब्द शब्दकोश मे थे, बौछार कर रहे थे।किंतु वह शख्स गम्भीर मुद्रा में शांत खड़ा था। मानो उसपर किसी की बात का कोई असर न पड़ रहा हो। उसकी चुप्पी अंग्रेजों का गुस्सा और बढा रही थी।
ट्रेन का गार्ड दौड़ा-दौड़ा आया. कड़क आवाज में पूछा, "किसने ट्रेन रोकी"।
कोई अंग्रेज बोलता उसके पहले ही, वह शख्स बोल उठा:- "मैंने रोकी श्रीमान"।
पागल हो क्या ? पहली बार ट्रेन में बैठे हो ? तुम्हें पता है, अकारण ट्रेन रोकना अपराध हैं:- "गार्ड गुस्से में बोला"
हाँ श्रीमान ! ज्ञात है किंतु मैं ट्रेन न रोकता तो सैकड़ो लोगो की जान चली जाती।
उस शख्स की बात सुनकर सब जोर-जोर से हंसने लगे। किँतु उसने बिना विचलित हुये, पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा:- यहाँ से करीब एक फरलाँग की दूरी पर पटरी टूटी हुई हैं।आप चाहे तो चलकर देख सकते है।
गार्ड के साथ वह शख्स और कुछ अंग्रेज सवारी भी साथ चल दी। रास्ते भर भी अंग्रेज उस पर फब्तियां कसने मे कोई कोर-कसर नही रख रहे थे।
किँतु सबकी आँखें उस वक्त फ़टी की फटी रह गई जब वाक़ई , बताई गई दूरी के आस-पास पटरी टूटी हुई थी।नट-बोल्ट खुले हुए थे।अब गार्ड सहित वे सभी चेहरे जो उस भारतीय को गंवार, जाहिल, पागल कह रहे थे।वे उसकी और कौतूहलवश देखने लगे, मानो पूछ रहे हो आपको ये सब इतनी दूरी से कैसे पता चला ??..
गार्ड ने पूछा:- तुम्हें कैसे पता चला , पटरी टूटी हुई हैं ??.
उसने कहा:- श्रीमान लोग ट्रेन में अपने-अपने कार्यो मे व्यस्त थे।उस वक्त मेरा ध्यान ट्रेन की गति पर केंद्रित था। ट्रेन स्वाभाविक गति से चल रही थी। किन्तु अचानक पटरी की कम्पन से उसकी गति में परिवर्तन महसूस हुआ।ऐसा तब होता हैं, जब कुछ दूरी पर पटरी टूटी हुई हो।अतः मैंने बिना क्षण गंवाए, ट्रेन रोकने हेतु जंजीर खींच दी।
गार्ड औऱ वहाँ खड़े अंग्रेज दंग रह गये. गार्ड ने पूछा, इतना बारीक तकनीकी ज्ञान ! आप कोई साधारण व्यक्ति नही लगते।अपना परिचय दीजिये।
शख्स ने बड़ी शालीनता से जवाब दिया:- श्रीमान मैं भारतीय #इंजीनियर #मोक्षगुंडम_विश्वेश्वरैया...
जी हाँ ! वह असाधारण शख्स कोई और नही "डॉ विश्वेश्वरैया" थे।

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एक बार भगत सिंह रेलगाड़ी से कहीं जा रहे हैं थे।एक स्टेशन पर गाड़ी रुकी तो भगत सिंह पानी पीने के लिए उतरे।
पास के ही एक कुँए के पास गये और पानी पिया। तभी उनकी नजर कुछ दूर पर खड़े एक शख्स पर पड़ी जो धूप में नंगे बदन खड़ा था और बहुत भारी वजन भी अपने कंधे पर रखा था।
तरसती हुई आंखों से पानी की ओर देख रहा था
मन में सोच रहा था शायद मुझको थोड़ा पानी पीने तो मिल जाए।भगत सिंह उसके पास गए और पूछने लगे आप कौन हो और इतना भारी वजन को धूप में क्यों उठाये खड़े हो।
तो उसने डरते हुए कहा साहब आप मुझसे दूर रहे नहीं तो आप अछूत हो जायँगे क्योंकि मैं एक बदनसीब अछूत हूँ।
भगत सिंग ने कहा आपको प्यास लगी होगी
पहले इस वजन को उतारो और मैं पानी लाता हूं
आप पानी पी लो।भगत सिंह के इस व्यवहार से वह बहुत खुश हुआ।
भगत सिंह ने उसको पानी पिलाया और फिर पूछा आप अपने आपको अछूत क्यों कहते हो
तो उसने हिम्मत करते हुए जबाब दिया -
अछूत मैं नहीं कहता अछूत तो मुझको एक वर्ग विशेष के लोग बोलते हैं और मुझसे कहते हैं आप लोग अछूत हो।तुमको छूने से हमारा धर्म भ्रष्ट हो जाएगा और मेरे साथ जानवरों जैसा सलूक करते हैं।
आप ने तो मुझको पानी पिला दिया नहीं तो मुझको पानी भी पीने का अधिकार नहीं हैं और न ही छाया में भी खड़े होने का अधिकार हैं और न ही सार्वजनिक कुँए से पानी पीने का अधिकार हैं।
तब भगत सिंह को आभास हुआ
मुझको तो बचपन से यही बताया गया हैं की देश अंग्रेजों से गुलाम हैं पर ये तस्वीर तो कुछ और ही बयां करती है।देश तो एक वर्ग विशेष के धर्मवादियों का गुलाम हैं जो धर्म के नाम भारत को मूर्ख बनाये हुए हैं।
तभी भगत सिंह सोचने लगे देश अग्रेजों से आजाद होकर भी गुलाम रहेगा क्योंकि इन अछूतों को कौन आजाद कराएगा।
फिर भगत सिंह ने इस बात को लेकर अध्यन किया और फिर सोचने लगे इनकी ऐसी हालत कैसे हुई।भगत सिंह ने "मैं नास्तिक क्यों" पुस्तक में लिखा हैं-
मैं तो नकली दुश्मनो से लड़ रहा था,असली दुश्मन तो मेरे देश में हैं।जिनसे अकेले बाबा साहब डॉ भीम राव अम्बेडकर लड़ रहे हैं।
अगर मैं जेल से छूटा तो आजीवन बाबा साहब साथ रहते हुए इन अछूत अस्पर्श्य भारतीयों की आजादी के लिए लडूंगा।
ये बात कुछ षड्यंत्रकारी लोगों को पता चल गयी बस दुश्मनों ने सोचा कि कहीं इसकी सोच और विचारधारा अम्बेडकर से मिल गई तो बहुत गड़बड़ी हो जायेगी ।
ये बात भगत सिंह शायद न कहते और न अपनी जेल डायरी में लिखते तो शायद फांसी न होती।
संदर्भ: भगतसिंह की जेल डायरी

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" राजपूतों ने मुगलों से अपनी बेटियों का विवाह किया। " इस पंक्ति की रट लगाने वाले तथाकथित बौद्धिक मुझे बता सकते हैं कि ऐसे व्यक्तियों की कुल संख्या कितनी होगी, जिन्होंने अपनी बहन-बेटियों का विवाह मुगल शासकों से किया ? पांच, दस, बीस, पच्चास या अधिक ? कितने होंगे ?
मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि
दस से अधिक नाम आपको याद नहीं होंगे।
लेकिन कुछ मानसिक अपाहिज इस तत्कालीन प्रवृत्ति को इतना बढ़ा चढ़ाकर बताते हैं, जैसे राजपूत केवल इसी के कारण अपना अस्तित्व बचाए हुए थे। राजपूत जाति की अदम्य जिजीविषा, त्याग, बलिदान, मुट्ठी भर होकर हजारों से लड़ने-भिड़ने का सामर्थ्य सब व्यर्थ ???
मुगलों को बेटियां दीं राजपरिवारों ने। क्या केवल राजपरिवार लड़ते थे ? लड़ने की जिम्मेदारी छोटे से छोटे राजपूत सामंत और ठाकुर तक की होती थी। कुछ लोग केवल इसलिए लड़े, क्योंकि वो राजपूत थे और जानते थे कि लड़ना अपना धर्म है; वरना न वो राजा थे,
न ठाकुर और न ही सामंत।
आपको मुगल शासकों को अपनी बेटी देने वाले पांच-दस राजपूत राजा याद हैं, लेकिन हजारों राजपूतों ने देश, धर्म के लिए अपने गले कटवा लिए, अपना पूरा परिवार हवन कर दिया,
उनका क्या ??
यदि राजपूतों का काम मुगलों को अपनी बेटी देने भर से चल रहा था, तो क्या जरूरत थी हजारों क्षत्राणियों को आग में कूद पड़ने की ?
यदि राजपूत चाकरी कर रहे थे,
तो एक हजार बरस से कौन लड़ रहा था कि
हम हिंदू बने रहे,
हमारे मंदिर बचे रहे ?
राजस्थान के गांव-गांव में भोमिया जी हुए हैं, जिन्होंने मातृभूमि, धर्म, गाय, ब्राह्मण, स्त्री और मंदिर के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग किया है। क्या इन सारे लोगों ने अपनी बेटियां मुगलों से ब्याही थी ?
राजपूत मुगल वैवाहिक संबंधों की व्याख्या आप चाहें वैसे करें, कोई आपत्ति नहीं। ऐसे संबंध मेरे गले भी नहीं उतरते। लेकिन इससे राजपूतों की वीरता, उनकी त्याग-वृत्ति धूमिल हो जाती है क्या ?
राजपूत धर्म और संस्कृति के लिए
लड़ने वाली जाति है।
आप चाहें, गालियां दें;
लेकिन ज्यों गंगा में पत्थर फेंक देने से
उसकी पावनता भंग नहीं हो जाती,
वैसे ही राजपूतों को गालियां देने से उनकी तलवार और रक्त से लिखी
रणरंग आख्यायिका कलुषित नहीं होती।.

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