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https://www.evernote.com/shard..../s562/sh/a79d8152-d0
https://webappdevelopment1221.....wordpress.com/2023/0

Note : An Extensive Rundown of Computerized Showcasing Organization Administrations for Your Business
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Note : An Extensive Rundown of Computerized Showcasing Organization Administrations for Your Business

Ambika Gupta nuovo articolo creato
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Google Label Director - Outline And Advantages | #webdesign companies in india #website designing companies in india

Google Label Director - Outline And Advantages

Google Label Director - Outline And Advantages

Google Label Supervisor is a free device that permits you to deal with your site's (and portable application's) labels in a single spot. Pretty much every site utilizes following codes, also known as labels.
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W Y nuovo articolo creato
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Das neue Club Universidad de Chile 2023 Heimtrikot wurde heute vorgestellt | #any

Das neue Club Universidad de Chile 2023 Heimtrikot wurde heute vorgestellt

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Das neue Club Universidad de Chile 2023 Heimtrikot wurde heute vorgestellt | #any

Das neue Club Universidad de Chile 2023 Heimtrikot wurde heute vorgestellt

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Das neue Club Universidad de Chile 2023 Heimtrikot wurde heute vorgestellt
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क्या हो जब आपने मित्र Neeraj Badhwar जी से उनकी नई नवेली किताब को अपने मित्रों से खरीदने का आग्रह करवाने के लिए, ऑलरेडी एक बड़ी एमाउंट paytm करवा ली हो। साथ ही उन्हें बड़े बड़े सपने दिखाएं हो ;
आप तनिक भी चिंता न करें, यह किताब मेरे द्वारा प्रमोट होते ही ब्लॉकबस्टर हो जाएगी...अरे ब्लॉकबस्टर क्या आउट ऑफ स्टॉक हो जाएगी...अरे देखिएगा आप, लोग बुकिंग के लिए पैसे लिए बैठे होंगे पर किसी को मिलेगी नहीं!
इधर शुभ मुहूर्त निकाल कर आप प्रमोशन करने बैठें हों और किताब ऑलरेडी सोल्ड आउट हो गई...😑ऑलरेडी आउट ऑफ स्टॉक हो गई तो अब क्या ही कहें!
मुझे लगता है यह मेरी बोली का ही प्रताप है जो ऐसा हुआ, पर मैं स्वयं यह कहकर श्रेय लेना पसंद नहीं करूँगी। यह बात नीरज जी स्वयं अपने लेखों और इंटरव्यू के माध्यम से ज्यादा कहें तो यह ज्यादा सही होगा।
खैर एज अ बनिया...मैने जब कमिटमेंट कर ली तो अपने आप की भी नहीं सुनती जैसा सोचकर आप लोगों के समक्ष यह किताब प्रस्तुत है। उनकी यह दूसरी किताब है जो प्री बुकिंग में ही आउट ऑफ स्टॉक हो चुकी है। अब बुकिंग के दिन स्टॉक में आते ही इसे फिर से आउट ऑफ स्टॉक करने का बीड़ा जरूर से उठाना हैं!
मज़ाक से इतर...
नीरज जी मेरे पसंदीदा व्यंग्यकार हैं। हल्की फुल्की बातों में कमाल का ह्यूमर ढूंढ़ लेते हैं, और जब उसे अपने अंदाज में लिखते हैं, तो पाठक अपनी सारी परेशानियों को एक तरफ रखकर बस हँसते हैं। और वाकई आजकल किसी को हँसा पाना बहुत टफ जॉब है, जो नीरज जी बहुत बढ़िया तरीके से निभाते आ रहे हैं।
ढेर सारी शुभकामनाएं नीरज जी💐💐महाकाल के आशीर्वाद से आप सदैव प्रगति के नित नए सोपान तय करें💐💐💐💐

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अचानक आई गर्मी से अचकचा गए मन को आज मौसम देख राहत सी मिली। सुबह उठ कर बालकनी में जाते ही ठंडी हवाओं ने एहसास दिया...मार्च आ गया है!
फागुन सा मन और होली के रंग जैसे अब आसमान में घुलने लगे हैं। जब भी ऐसा मौसम होता है तो अपने कॉलेज के समय और मेरी 'सनी' बड़ी याद आती है। मैं और प्रियंका ऐसे मौसम में बेकाम ही घर से निकल जाते थे। यूँही घूमते, कुछ चटोरापन और ढेर सारी मस्ती! उफ्फ क्या दिन थे!!
ख़ैर...आज मौसम के साथ मैं भी बाहर निकल आई। बेटे के एग्जाम हैं उसे स्कूल छोड़ना आज बड़ा सुहाना लग रहा था। आज कहीं निकलना है तो उसके स्कूल में ही इंतज़ार कर रही हूँ, उसके पेपर खत्म होने का।
बाहर का समा बहुत प्यारा है, हरे भरे बगीचे, रंगबिरंगे फूल और ढेर सारे झूले। पर यहाँ पर मुझे एलिगेंट तरीके से वेट करना है, अपने बचपन को आँखों मे दबाए मैं बैठ गई हूँ।
मन की चाहना भी अजीब होती है, जब बचपन था तो लगता था बड़ा होना कितना अच्छा है...अब बड़े हो गए तो बचपन जीने का मन करता है।
बैठे बैठे सबसे खूबसूरत बात हुई। अचानक माइक पर सबसे पहले नमो अरिहंताणं और फिर ॐ भूर भुव स्व तत्वितुर्वरेण्यम शुरू हो गया।
मुझे सुनकर तसल्ली हुई, इस कांक्रीट के जंगल मे भी बच्चे के लिए यह स्कूल चुन पाई जो कम से कम ईसाई मिशनरियों की तरह नहीं।
अब राष्ट्रगान हुआ। और जनगणमन गुनगुनाते हुए मैं फिर से वो समय जी आई जो छोड़ आए थे पीछे।
यह बात शिद्दत से महसूस की आज कि कैसा भी मन हो, राष्ट्रगान सुनते ही मन मे गर्व, कृतज्ञता और प्रेम एक साथ उमड़ उठता है। मैं लिख रही हूँ और बैकग्राउंड में चल रहा है;
इतनी शक्ति हमे देना दाता मन का विश्वास कमजोर हो न...
बाकी तो...

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अचानक आई गर्मी से अचकचा गए मन को आज मौसम देख राहत सी मिली। सुबह उठ कर बालकनी में जाते ही ठंडी हवाओं ने एहसास दिया...मार्च आ गया है!
फागुन सा मन और होली के रंग जैसे अब आसमान में घुलने लगे हैं। जब भी ऐसा मौसम होता है तो अपने कॉलेज के समय और मेरी 'सनी' बड़ी याद आती है। मैं और प्रियंका ऐसे मौसम में बेकाम ही घर से निकल जाते थे। यूँही घूमते, कुछ चटोरापन और ढेर सारी मस्ती! उफ्फ क्या दिन थे!!
ख़ैर...आज मौसम के साथ मैं भी बाहर निकल आई। बेटे के एग्जाम हैं उसे स्कूल छोड़ना आज बड़ा सुहाना लग रहा था। आज कहीं निकलना है तो उसके स्कूल में ही इंतज़ार कर रही हूँ, उसके पेपर खत्म होने का।
बाहर का समा बहुत प्यारा है, हरे भरे बगीचे, रंगबिरंगे फूल और ढेर सारे झूले। पर यहाँ पर मुझे एलिगेंट तरीके से वेट करना है, अपने बचपन को आँखों मे दबाए मैं बैठ गई हूँ।
मन की चाहना भी अजीब होती है, जब बचपन था तो लगता था बड़ा होना कितना अच्छा है...अब बड़े हो गए तो बचपन जीने का मन करता है।
बैठे बैठे सबसे खूबसूरत बात हुई। अचानक माइक पर सबसे पहले नमो अरिहंताणं और फिर ॐ भूर भुव स्व तत्वितुर्वरेण्यम शुरू हो गया।
मुझे सुनकर तसल्ली हुई, इस कांक्रीट के जंगल मे भी बच्चे के लिए यह स्कूल चुन पाई जो कम से कम ईसाई मिशनरियों की तरह नहीं।
अब राष्ट्रगान हुआ। और जनगणमन गुनगुनाते हुए मैं फिर से वो समय जी आई जो छोड़ आए थे पीछे।
यह बात शिद्दत से महसूस की आज कि कैसा भी मन हो, राष्ट्रगान सुनते ही मन मे गर्व, कृतज्ञता और प्रेम एक साथ उमड़ उठता है। मैं लिख रही हूँ और बैकग्राउंड में चल रहा है;
इतनी शक्ति हमे देना दाता मन का विश्वास कमजोर हो न...
बाकी तो...

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अचानक आई गर्मी से अचकचा गए मन को आज मौसम देख राहत सी मिली। सुबह उठ कर बालकनी में जाते ही ठंडी हवाओं ने एहसास दिया...मार्च आ गया है!
फागुन सा मन और होली के रंग जैसे अब आसमान में घुलने लगे हैं। जब भी ऐसा मौसम होता है तो अपने कॉलेज के समय और मेरी 'सनी' बड़ी याद आती है। मैं और प्रियंका ऐसे मौसम में बेकाम ही घर से निकल जाते थे। यूँही घूमते, कुछ चटोरापन और ढेर सारी मस्ती! उफ्फ क्या दिन थे!!
ख़ैर...आज मौसम के साथ मैं भी बाहर निकल आई। बेटे के एग्जाम हैं उसे स्कूल छोड़ना आज बड़ा सुहाना लग रहा था। आज कहीं निकलना है तो उसके स्कूल में ही इंतज़ार कर रही हूँ, उसके पेपर खत्म होने का।
बाहर का समा बहुत प्यारा है, हरे भरे बगीचे, रंगबिरंगे फूल और ढेर सारे झूले। पर यहाँ पर मुझे एलिगेंट तरीके से वेट करना है, अपने बचपन को आँखों मे दबाए मैं बैठ गई हूँ।
मन की चाहना भी अजीब होती है, जब बचपन था तो लगता था बड़ा होना कितना अच्छा है...अब बड़े हो गए तो बचपन जीने का मन करता है।
बैठे बैठे सबसे खूबसूरत बात हुई। अचानक माइक पर सबसे पहले नमो अरिहंताणं और फिर ॐ भूर भुव स्व तत्वितुर्वरेण्यम शुरू हो गया।
मुझे सुनकर तसल्ली हुई, इस कांक्रीट के जंगल मे भी बच्चे के लिए यह स्कूल चुन पाई जो कम से कम ईसाई मिशनरियों की तरह नहीं।
अब राष्ट्रगान हुआ। और जनगणमन गुनगुनाते हुए मैं फिर से वो समय जी आई जो छोड़ आए थे पीछे।
यह बात शिद्दत से महसूस की आज कि कैसा भी मन हो, राष्ट्रगान सुनते ही मन मे गर्व, कृतज्ञता और प्रेम एक साथ उमड़ उठता है। मैं लिख रही हूँ और बैकग्राउंड में चल रहा है;
इतनी शक्ति हमे देना दाता मन का विश्वास कमजोर हो न...
बाकी तो...

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