गलत व्यक्ति का गलत सन्देश :-
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*"वेद पढ़ना आसान है, पर किसी की वेदना पढ़ना बहुत कठिन"*
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प्रायः आपको यह सन्देश कहीं न कहीं सुनने/पढ़ने को मिला ही होगा |
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*क्या यह वाक्य/वचन सही है ??*
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प्रथम दृष्टि में सही है लेकिन सूक्ष्मता से देखें तो गलत है |
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*यह वाक्य प्रायः वही बोलते हैं जिनको वेद का सामान्य ज्ञान तक नहीं* है.....जिन्होंने वेद मन्त्र पढ़े ही नहीं हैं |
यदि वेद पढ़े होते तो यह न कहते ""वेद पढ़ना आसान है".............जब चारों वेद की ऋचाओं का सस्वर पाठ करेंगे तब पता चलेगा की वेद पढ़ना कितना आसान है ...........चक्कर आ जायेंगे पढ़ने में ......समझने में तो और भी कठिन अर्थात् स्वतन्त्र अर्थ/भाष्य करना कठिन है | "पदपाठ, क्रम पाठ, जटा पाठ, माला-पाठ, शिखा पाठ, रेखा पाठ, ध्वज पाठ, दण्ड पाठ, रथ पाठ और घनपाठ" करेंगे तो पूरे ही चकरा जायेंगे | एक अच्छे वेदपाठी पण्डित बनने में दशकों का श्रम होता है .....कोई हंसी मजाक नहीं है ......... *बात करते हैं ""वेद पढ़ना आसान है" |*
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हिन्दुओं के बहुत सारे लोग इस वाक्य को पान चबाते-चबाते हुए बोलते रहते हैं ........क्यों ?? क्योंकि इस वाक्य को बोलने में श्रम नहीं लगता .........लेकिन यदि इन्हीं लोगों के सामने को दुर्घटना घट जाती है तब मोबाईल से वीडियो बनाते है .......वेदना गायब .......क्यों ??? क्यों की वेद तो पढ़े ही नहीं |
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*अब आइये ! वाक्य के दूसरे हिस्से में |*
वाक्य का दूसरा हिस्सा "किसी की वेदना पढ़ना बहुत कठिन" ......*यह भी गलत है |*
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किसी की वेदना पढ़ना बहुत ही आसान है .......बस मन निर्मल होना चाहिये
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वेद से ही प्रमाण दे रहा हूँ, देखिये :-
(१)
वेद का आदेश / उपदेश है :-
दृते दृहं मा मित्रस्य मा चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षन्ताम् |
मित्रस्याहं चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षे |
मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे ||
यजुर्वेद 36/18
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हे परमात्मा ! आप मुझे दृढ कीजिये !
मैं व परस्पर हम सब एक दूसरे को मित्र की दृष्टि से देखें |
हम एक दूसरे को स्नेह एवं विश्वास की दृष्टि से देखें |
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(२)
यस्तु सर्वाणि भूतानि आत्मन्येवानुपश्यति
सर्वभूतेषु चात्मानं ततो न विचिकित्सति (यजुर्वेद 40/6)
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जो व्यक्ति सब प्राणियों को अपने अन्दर देखता है, और सब प्राणियों में अपने को देखता है वह सम-भाव में रहता है और उसके कारण चिन्ता-भय-सन्देश से रहित हो जाता है |
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अब बताइये !!!!!!
बानगी के तौर पर यहाँ प्रस्तुत इन दो मन्त्रों को जिसने पढ़ा होगा वह वेदना को सरलता से पढ़ पायेगा या कठिनता से ???
*इसलिए वेद पढ़ना कठिन है और वेदना पढ़ना सरल |*
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अब प्रश्न होता है की वेदना पढ़ना सरल है तो उसका कारण क्या है ?
तो उत्तर है की वेदना इसलिए पढ़ ली जाती है क्यों की *वेद सबकी आत्मा में प्रतिष्ठित हैं |*
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हम सबके भीतर हृदय में, आत्मा में परमात्मा चारों वेद प्रतिष्ठित किये हैं, देखिये प्रमाण :-
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ओ३म् यस्मिन्नृचः साम यजूंषि यस्मिन् प्रतिष्ठिता रथनाभाविवाराः ।
यस्मिँश्चित्तं सर्वमोतं प्रजानां तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु ।।-(यजुर्वेद 34/5)
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भावार्थ:- मन में सम्पूर्ण वेद (ऋग्, यजु:, साम)प्रतिष्ठित हैं तथा ज्ञान से ओतप्रोत रहता है, मन की शक्ति सदा शुभ विचारों से युक्त होती है।
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*अब बताइये ! वेदना की अनुभूति वेद के कारण हो रही है या किसी और के कारण ?* वेद तो भीतर पहले से ही हैं इसलिए वेदना की अनुभूति होती है ...........जब से वेद को पढ़ना छोड़ेंगे ......*अन्य निरर्थक बेधर्मी-विधर्मी पुस्तकों को पढ़ेंगे तब से वेदना की अनुभूति कम होती जायेगी*| इसलिए निरर्थक, कुर्-रीतियों, दुर्-आचरण की पुस्तकें मत पढ़ा कीजिये अन्यथा बकरा, मुर्गा कटता रहेगा पर उसका रोना सुन कर भी वेदना नहीं आयेगी |
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आगे से सबसे पहले तो उपर्युक्त वचन भूल कर भी न दोहरायें और यदि कोई बोलता हो तो उसे समझायें और यदि समझाने का साहस या समय न हो तो कम-से-कम यह तो मान /जान ही लें की बोलने वाले व्यक्ति ने वेद नहीं पढ़े, वह वेद के बारे में कुछ नहीं जानता अन्यथा ऐसा न बोलता...✍️
ओ३म्
