Keşfedin MesajlarıKeşfet sayfamızdaki büyüleyici içeriği ve farklı bakış açılarını keşfedin. Yeni fikirleri ortaya çıkarın ve anlamlı konuşmalara katılın
भीड़ में भी एकांत खोजना ही सन्यास है आज के परिदृश्य में
हर जगह कोना तो होता ही है
जंहा अतीत से निकल सकें परंतु उसकी जकड़न ढीली नहीं होती।
हा ! जीवन में आपाधापी है
जंजाल से निकलने का रास्ता भी तो नहीं है कहने को तो हम अनासक्त भी बन सकते है
वह संभव नहीं ! यह पेंडुलम घूमता, घूमता है जैसे ही स्थिर होता है परिस्थितियों का झोंका वेग दे जाता है । हम वही है, पथ भी वही, कभी तेज कभी मद्धिम।।
विश्व के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र का सविंधान अलिखित है।
सबसे भ्र्ष्ट देश नाइजीरिया का सविंधान सबसे संतुलित माना जाता है।
सबसे बड़े भारत के सविंधान अब तक सबसे अधिक संशोधन हुये है। सविंधान पूजको के देख रेख में पूरा सविंधान 42 वे संसोधन में बदल दिया गया था।
इसी सविंधान कि आड़ में कैसे निरकुंश सत्ता चलती थी, यह देखा गया है। धारा 356 लगाकर राज्यों की सरकार बर्खास्त की जाती थी।
कांग्रेस ने 91 बार गैरकांग्रेसी सरकारों को अपदस्थ कर दिया गया।
सविंधान कोई ऐसी विचित्र रचना नहीं है जिसका गुणगान किया जाय।
आज 10 बौद्धिक लोंगो को बैठा दीजिये। इससे अच्छा सविंधान बनाकर दे देंगें। ऐसे ही समूह ने उस समय भी बनाया था।
अमेरिकी कांग्रेस आवश्यकता के आधार पर कानून बनाती है।
सभी देश व्यवस्था के लिये सविंधान कानुन बनाये है।
लेकिन कानून या सविंधान जीवन मूल्य पैदा नहीं कर सकते है।
समाज का निर्माण जीवन मूल्यों के आधार पर चलता है।
व्यक्ति कि वर्जना से समुदाय नहीं बनता। समुदाय से ही समाज राष्ट्र का निर्माण होता है।
प्रतिदिन, प्रतिपल कोई सविंधान हमें यह नहीं बता सकता कि परिवार, मित्र , समाज आदि से हमारा व्यवहार कैसा होना चाहिये।
यह मूर्खतापूर्ण तुलना है कि शास्त्रों के सामने सविंधान लाया जाता है।
जिन राष्ट्रों कि अपनी प्राचीन संस्कृति है। वहाँ तो सविंधान और भी महत्वहीन है।
इतने लंबे संघर्ष तुर्क, मुगल , अंग्रेजों के शासन में हम जीवित थे तो अपनी इसी संस्कृति के मूल्यों के आधार ही थे।
रामायण, महाभारत भारतीय समाज के लिये जीवन मूल्यों का निर्धारण, सिद्धांतों का निर्माण, अटूट धार्मिकता, व्यवहारिक जीवन को बनाने में शताब्दियों से एक महान भूमिका निभा रहे है।
हमारे ऋषियों ,कवियों , लेखकों , संगीतकारो, कलाकारों ने रामायण और महाभारत के आधार पर ऐसी रचना कि इस संस्कृति का धारा निरंतर प्रवाहित है।
हमें यह समझना होगा कि ड्राइविंग लाइसेंस लेकर चलने और सड़क पर पड़े किसी घायल को उठाकर अस्पताल में पहुँचाने में क्या अंतर है।
गोस्वामी तुलसीदास जी जो रचना किये है। वह ड्राविंग लाइसेंस नहीं है। जिसके न रखने से सजा हो जायेगी।
भक्तशिरोमणि जो लिखें है वह हृदय का स्पंदन और आत्मा का उद्धार है। वह वही है जो किसी सड़क पर घिरे रक्त से लथपथ व्यक्ति को हम अस्पताल पहुँचा देते है। यदि न भी पहुँचाये तो कोई सजा नहीं है।
रामचरित मानस कोई सामान्य रचना नहीं है। हिंदी बोलने वाले हर व्यक्ति को कम से कम एक चौपाई तो अवश्य कंठस्थ रहती है।
बहुत दरिद्रता, पीड़ाओं के साथ गंगा किनारे झोपड़ी में एक कवि ने यह रचना कि है।
यह कहते हुये किये -
स्वांतः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा।
यह एक वाक्य है कि...
मानव सभ्यता का निर्माण युद्घ से हुआ है।
जैसे ज्वालामुखी की राख से धरती उपजाऊ बनी थी।
जहां युद्ध होता है, वहाँ ज्ञान भी होता है।
ज्ञान और युद्ध का सम्बंध प्राचीनकाल से है।
रोमन युद्धकला प्रेमी थे। उन्होंने उतने ही दार्शनिक भी पैदा किये।
भारत युद्धभूमि रहा है। यह एक मात्र सभ्यता है जिसने युद्ध के लिये एक क्षत्रिय वर्ण ही निर्मित कर दिया। लेकिन भारत उतना ही ज्ञान के लिये भी जाना जाता रहा है। धर्म और जीवन रहस्यों को समझने के लिये शोधरत रहा।
ज्ञान और युद्ध अनिवार्यता दिखती है।
इस पर प्रश्न हो तो स्प्ष्ट कर दूं कि मैं सभ्यता कि बात कर रहा हूँ, खानाबदोश लुटेरों कि नहीं।
आज वर्तमान में देखिये.. जो राष्ट्र युद्ध के लिये आत्मनिर्भर हैं, वह ज्ञान में भी विकसित हैं।
इसका एक बेहतरीन उदाहरण है...
अरब और इजरायल!
अरबों के पास पैसा है लेकिन वह रक्षा में विकसित नहीं हैं।
उनके पास प्रशिक्षित पायलट तक नहीं हैं। तो उनके पास ज्ञान भी नहीं है।
इजरायल जो अकेले पूरे अरब को हरा दिया था, उसके पास ज्ञान है।
युद्ध का साहस और जीवन का ज्ञान साथ साथ चलते हैं।
जो साहसी नहीं है, वह तपस्वी नहीं बन सकते।
कायरों का ज्ञान भी कोरी कल्पना और सन्तुलनवाद होता है।
जो लक्ष्य साध सकता है, वही स्प्ष्ट विचार भी दे सकता है।
इस जगत का सबसे गहरा ज्ञान, युद्धभूमि से दिया गया था।
प्रथम योद्धा के संदेह को प्रायः ईश्वर ही दूर करते हैं।।
तंत्र शिव उपासना का ही एक भाग है।
भारत में तो यह बहुत विकसित थी।
यहां तक कि इसके लिये शिक्षा केंद्र खोले गये थे।
प्रतिहार क्षत्रिय राजाओं द्वारा निर्मित
चौसठ योगनी मंदिर तंत्र विद्या का केंद्र था।
यहां छात्र अपनी साधना से सिद्धि प्राप्त करते थे।
दीपावली, दशहरा पर अपनी सिद्धि को जागृत करते थे।
ऐसा कहा जाता है, जँहा सिद्ध आत्मा रहती हैं, वह चमत्कारी प्रभाव रखती हैं।
यह विश्वास समाज में सदा रहा है, आज भी है।
रहस्यमयी घटनाएं, जीवन को जटिल बनाती हैं। हम उसको सुलझाना चाहते है। यह तंत्र का आधार है।
श्रीमती इंदिरा गाँधी तंत्र पर बहुत विश्वास करती थीं। उनके नजदीकी लोगों का कहना है, वह हर महत्वपूर्ण कार्य के पहले तांत्रिकों सलाह लेती थीं।
प्रधानमंत्री राव और चंद्रशेखर भी तांत्रिको के संपर्क में रहते थे। तांत्रिक चंद्रास्वामी का अनेक पूर्व प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपतियों से सम्बंध थे।
तंत्र के एक विद्वान उद्धव बाबा, कहते थे तांत्रिकों को लालच, लोभ से दूर रहना चाहिये। नहीं तो सिद्धि नष्ट हो जाती है। उनका तंत्र उनके विरुद्ध काम करने लगता है।
जब हमने तंत्र को अंधविश्वास घोषित किया और समाज से बाहर फेंक दिया तो उनका स्थान फादरो, शिस्टरो और मजारों ने ले लिया। जबकि इसके पीछे न सिद्धि न ही तपस्या थी।
बागेश्वर धाम ऐसे सिद्ध योगियों का स्थान था। वर्तमान में जो है उनके विषय में ठीक से नहीं जानता। लेकिन यदि उन्होंने सिद्धि प्राप्त किया है तो संभव है कि योग्य हो ही।
यदि कोई तांत्रिक लोभ, लालच से दूर है तो उसके विरुद्ध कोई भी हो , कुछ कर नहीं सकता है।
अब विद्या लगभग विलुप्त हो चुकी है। इस पर कोई कार्य करता है तो प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
मुरैना जिले में यह महान रचना चौसठ योगनी मंदिर , अब खंडहर में बदल रही है। इसके उद्धार कि आवश्यकता है।
ज्ञान हो और स्वीकार करने में उतना ही अंतर है जितना मूर्ख और बुद्धिमान होने में है।💮
आज मैं रावण कि राज्यसभा में एक रक्षा विशेषज्ञ के रूप में दूत हूँ। निष्पक्ष समीक्षा कर रहें हैं। हमनें रावण की यह बात मान ली है कि उसके सामने दो मनुष्य है, कोई ईश्वर नहीं हैं।👇
इसको सरलता से समझने के लिये चलते है अरण्य वन में।
जहां खर दूषण मारे जा चुके हैं। भगवती सीता को रावण अपहरित करके ले जा चुका है।
रावण के गुप्तचरों ने यह सूचना दी कि वह दो ही वनवासी राजकुमार संन्यासी हैं।
अभी मैं रावण को अत्याचारी, दुष्ट मान सकता हूँ, लेकिन बुद्धिहीन नहीं कह सकता।
जिसकी शक्तियां अपरमित हैं। उसका यह सोचना युद्ध रणनीति से ठीक है।
अगली सूचना जब रावण को मिलती है। वह यह है कि संन्यासी राजकुमारों के साथ एक विशालकाय सेना है, जिसे स्वयं मर्यादापुरुषोत्तम ने प्रशिक्षित किया है।
यह कोई सामान्य सूचना नहीं है। कूटनीति यह कहती है कि वह मनुष्य हो सकते हैं लेकिन एक महान सेनानायक, योद्धा हैं, जो इतने कम समय में इतनी विशाल सेना खड़ी कर दिये।
रावण यह स्वीकार नहीं कर रहा है। अब मुझे यह संदेह हो रहा है कि यह मूर्ख तो नहीं है ? सुनिश्चित इसलिये नहीं है कि रावण के पास इतनी शक्ति है कि वह किसी भी सेना को परास्त कर सकता है।
एक घटना,
जिसमें राम के एक दूत ने लंका में त्राहिमाम मचा दिया।
एक तरह से राजधानी को नष्ट ही कर दिया।
रावण अब भी नहीं स्वीकार कर रहा है।
उसे संदेह का लाभ देते है कि यह एक दुर्घटना हो सकती है।
लेकिन अब जो हुआ है वह न देवताओं, न दैत्यों , न ही मनुष्यों के लिये सम्भव है। सम्भवतः रावण भी उस सेना से नहीं डर रहा था। उसके विश्वास का ठोस आधार है कि इतनी बड़ी सेना समुद्र पार नहीं कर सकती है।
यह सूचना कि राम की सेना ने समुद्र पर सेतु बना दिया है।
वह भरी सभा में चिल्ला पड़ा ! असंभव।
लेकिन यह सत्य था।
मेरा पूरा विश्वास है कि जब रावण स्वयं कह रहा है कि यह असंभव है। तो वह उनकी शक्तियों को जान गया होगा, अपना शांतिदूत भेज देगा।
यह तो बड़ा ही आश्चर्य है।
रावण की जगह राम दूत भेज रहे हैं।
रावण अंगद को अपनी सभा में अपमानित कर रहा है।
वह मांग ही क्या रहे हैं ! अपनी पत्नी।
रावण ! दुष्ट, अत्याचारी, दुरात्मा हो तो ठीक भी था। यह तो महामूर्ख है।
मूर्ख राजा के राज्य में नहीं रहना चाहिये, वह सर्वनाश कर देगा।