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मुहम्मद रफ़ी :- भारत रत्न कब ?
अमृतसर से लाहौर की दूरी कुल 50 किलोमीटर है। इसी दो शहरों के बीच कोटला सुल्तान सिंह गांव में हाजी अली मुहम्मद की एक नाई की दुकान थी।
हाजी अली मुहम्मद अपने गांव के एकमात्र हाजी थे इसलिए उनका गांव में बेहद सम्मान था। इन्हीं हाजी अली मुहम्मद के तीन बेटों में एक थे "फिको" ।
फीको को गाने का बहुत शौक था , बचपन में ही वह गांव में गाने गाकर भीख मांगते फकीरों के पीछे पीछे चलते , उनके गाए गाने गाते और गुनगुनाते।
मगर उनके साथ समस्या यह थी कि "फीको" के वालिद हाजी और बेहद दीनदार थे इसलिए "फीको" के गाना गाने पर उन्हें ऐतराज था।
फीको उनकी गैरमौजूदगी में अपनी नाई की दुकान पर बैठे बैठे फकीरों के गानों को गाया करते थे‌।
पिता की सख्ती शायद "फीको" के इस शौक को खत्म ही कर देती कि उनके बड़े भाई दीन‌ मुहम्मद ने उनकी मदद की और उन्हें किराना घराने के अब्दूल वहीद खान , जीवन लाल‌ मट्टू , फिरोज निजामी और छोटे गुलाम अली खान साहब के यहां ले जाते और "फीको" इन सभी उस्ताद लोगों से संगीत सिखते।
तभी 1937 में एक घटना हुई और लाहौर में लगने वाले एक मेले में तत्कालीन मशहूर गायक के एल सहगल परफार्म करने वाले ही थे कि बिजली की समस्या आ गयी और के एल सहगल अंधेरे में परफॉर्म करने से मना कर दिए।
के एल सहगल का इंतजार कर रही भीड़ ने हंगामा कर दिया और आयोजक परेशान हो गए , तभी आयोजकों ने माईक पर ऐलान किया कि आप लोग एक बार 13 साल के इस बच्चे "फीको" को सुन लीजिए फिर के एल सहगल आएंगे।
"फीको" रात भर भीड़ को गाना सुनाते रहे और भीड़ के एल सहगल को भूल कर "फीको" को ही सुनती रही।
प्रोग्राम खत्म होने के बाद के एल सहगल ने "फीको" को बुलाया और शाबाशी दी , उनके साथ मौजूद संगीतकार श्याम सुन्दर ने "फीको" को एक पंजाबी फिल्म "गुल बलोच" में एक गाना गवाया "सोनियो नी हीरियो नी"

श्याम सुन्दर ही "फीको" को लेकर बांबे आ गये और "फीको" को रहने के लिए एक चाल की व्यवस्था कर दी।
फीको स्वभाव से इतने शर्मीले और शांत थे कि वह चाल में रहते थे और दूसरों को कष्ट ना हो इसलिए संगीत का रियाज नहीं करते थे।
रियाज में समस्या होती देख "फीको" मरीन ड्राइव सुबह सुबह पहुंच जाते और संगीत का रियाज करते थे और वहीं उनकी आवाज़ हर सुबह गूंजा करती थी।
मरीन‌ ड्राईव पर ही तत्कालीन अभिनेत्री और गायिका सुरैया रहती थीं , वह हर दिन फीको की गूंजती आवाज सुनतीं।

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मशहूर फिल्म निर्माता नितिन मनमोहन का निधन

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चंडीगढ़ के पीयू में कोरोना की एंट्री!

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राहुल गांधी ने दी गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती पर बधाई

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बॉक्सर Saweety boora नै लठ गाड़ दिया भोपाल में चल रही नेशनल चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जितके बहुत घणी सारी बधाई हो ❤️❤️

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“मैंने_दहेज़_नहीं_माँगा” साहब मैं थाने नहीं आउंगा, अपने इस घर से कहीं नहीं जाउंगा, माना पत्नी से थोड़ा मन-मुटाव था, सोच में अन्तर और विचारों में खिंचाव था, पर यकीन मानिए साहब, “मैंने दहेज़ नहीं माँगा”
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मानता हूँ कानून आज पत्नी के पास है, महिलाओं का समाज में हो रहा विकास है। चाहत मेरी भी बस ये थी कि माँ बाप का सम्मान हो, उन्हें भी समझे माता पिता, न कभी उनका अपमान हो । पर अब क्या फायदा, जब टूट ही गया हर रिश्ते का धागा, यकीन मानिए साहब, “मैंने दहेज़ नहीं माँगा”
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परिवार के साथ रहना इसे पसंद नहीं है, कहती यहाँ कोई रस, कोई आनन्द नही है, मुझे ले चलो इस घर से दूर, किसी किराए के आशियाने में, कुछ नहीं रखा माँ बाप पर प्यार बरसाने में, हाँ छोड़ दो, छोड़ दो इस माँ बाप के प्यार को, नहीं माने तो याद रखोगे मेरी मार को,
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फिर शुरू हुआ वाद विवाद माँ बाप से अलग होने का, शायद समय आ गया था, चैन और सुकून खोने का, एक दिन साफ़ मैंने पत्नी को मना कर दिया, न रहूँगा माँ बाप के बिना ये उसके दिमाग में भर दिया। बस मुझसे लड़कर मोहतरमा मायके जा पहुंची,
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2 दिन बाद ही पत्नी के घर से मुझे धमकी आ पहुंची, माँ बाप से हो जा अलग, नहीं सबक सीखा देंगे, क्या होता है दहेज़ कानून तुझे इसका असर दिखा देगें। परिणाम जानते हुए भी हर धमकी को गले में टांगा, यकींन माँनिये साहब, "मैंने दहेज़ नहीं माँगा”
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जो कहा था बीवी ने, आखिरकार वो कर दिखाया, झगड़ा किसी और बात पर था, पर उसने दहेज़ का नाटक रचाया। बस पुलिस थाने से एक दिन मुझे फ़ोन आया, क्यों बे, पत्नी से दहेज़ मांगता है, ये कह के मुझे धमकाया।
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माता पिता भाई बहिन जीजा सभी के रिपोर्ट में नाम थे,
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घर में सब हैरान, सब परेशान थे,अब अकेले बैठ कर सोचता हूँ, वो क्यों ज़िन्दगी में आई थी,
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मैंने भी तो उसके प्रति हर ज़िम्मेदारी निभाई थी। आखिरकार तमका मिला हमें दहेज़ लोभी होने का, कोई फायदा न हुआ मीठे मीठे सपने संजोने का । बुलाने पर थाने आया हूँ, छुपकर कहीं नहीं भागा, लेकिन यकीन मानिए साहब, “मैंने दहेज़ नहीं माँगा”
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• झूठे दहेज के मुकदमों के कारण, पुरुष के दर्द से ओतप्रोत एक मार्मिक कृति!

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