إستكشف المشاركات استكشف المحتوى الجذاب ووجهات النظر المتنوعة على صفحة Discover الخاصة بنا. اكتشف أفكارًا جديدة وشارك في محادثات هادفة
मुरैना जिले में, मेरे मातुल गृह से दो कोस की दूरी पर सिहोंनिया नामक ग्राम में स्थित नागर शैली का अद्भुत वास्तु।
अद्भुत क्यों जबकि नागर शैली के मंदिर तो तमाम हैं। खजुराहो की भव्यता के आसपास भी नहीं यह मंदिर।
अद्भुत इस अर्थ में है कि यह मंदिर अनगढ़ शिलाओं को उड़द की दाल से बने विशेष मसालों की सहायता से एक दूसरे पर गुरुत्व संतुलन के आधार ओर ऐसा बिठाया कि औरंगजेब की तोपें भी इसे ढहा न सकीं।
इसकी अनगढ़ शिलाओं जिनके बीच मनुष्य के निकलने तक के रिक्त स्थान हैं, को देखकर लगता है कि मंदिर अब गिरा कि तब गिरा लेकिन वह दृढ़ है, काल से जूझते हुए।
इसके बारे में किवदंती है कि कच्छपघात राजपूत राजा, जिनके वंशज आज कछवाहा राजवंश के रूप में जयपुर में दरबार लगाते हैं, की रानी ककनावती ने प्रण किया कि जब तक उनके आराध्य का मंदिर न बनेगा वह अन्न ग्रहण नहीं करेंगी।
दूध और फलों पर रह रही रानी को देख राजा का प्रेम आहत हुआ और राजदर्प जागा।
दिनरात काम हुआ और राजा की इच्छा पर सिर्फ छह महीने में किसी महान शिल्पी ने इस अनगढ़ मंदिर के रूप में कला के अनमोल मोती की रचना की।
जनसामान्य में इतिहास की जगह मिथ स्थापित हुआ-
"ककनमठ का निर्माण देवताओं ने छह महीने की एक रात बनाकर किया।"
इतिहास मिथकों में ऐसे बदलते हैं और फिर जड़बुद्धि उसे आस्था का रूप दे देते हैं।
#इंदु_से_सिंधु अतीन्द्रिय पुराण कथाओं में चमत्कारों से इतर वास्तविक इतिहास को ढूंढने का प्रयत्न है ताकि पश्चिमी इतिहासकार हमारे पुराणों व उनके महानायकों को मिथ कहकर उन्हें झुठलाने का प्रयत्न न कर सकें।
उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री व राजस्थान के भूतपूर्व राज्यपाल एवं हमारे मार्गदर्शक व प्रेरणास्रोत आदरणीय कल्याण सिंह जी (#बाबू_जी) जी की जयंती पर उन्हें शत् शत् नमन🙏🏻🙏🏻💐।
समय के खोए हुए पन्नें
●Missing Pages of History●
14 अप्रैल, 1229: लगभग 700 साल पहले एक भिक्षुक ने कुछ पुराने पड़े चर्मपत्रों को साफ करके, उन पर लिखी लिपि को मिटाकर, एक नयी प्रार्थना पुस्तक लिखी। उस समय पुस्तकों का पुनर्प्रयोग एक आम बात थी। 700 साल के बाद यह पुस्तक वर्तमान के तुर्की में एक डेनिश वैज्ञानिक योहान लुडविग हायबर्ग को मिली। पुस्तक के सूक्ष्म निरीक्षण से उन्हें आश्चर्य हुआ क्योंकि अक्षरों के नीचे मिटाए गए धुंधले इम्प्रेशन्स थे जो यह इशारा कर रहे थे कि पुस्तक का संबंध प्राचीन ग्रीस से है। मल्टीस्पेक्ट्रल इमेजिंग और एक्स-रे तकनीक की सहायता से यह पता चला कि इस पुस्तक वास्तव में कैल्कुलस की मूल अवधारणाओं पर लिखी गयी किताब थी जिसे 2000 साल पहले महान ग्रीक वैज्ञानिक आर्किमिडीज ने लिखा था।
.
अगर उस भिक्षुक ने इस पुस्तक को नष्ट नहीं किया होता तो क्या कैल्कुलस न्यूटन से कई शताब्दी पहले ही खोज लिया जाता? क्या हम ज्ञान-विज्ञान के स्तर पर समय से आगे होते? यकीन के साथ तो नहीं कहा जा सकता पर यह तय है कि इतिहास के कुछ पन्ने हमेशा के लिए खो जाना ही शायद नियति का अंग है।
● ● ●
ब्रह्मांड का निरंतर प्रसार हो रहा है पर हमारे लोकल क्लस्टर में मौजूद 50 के करीब आकाशगंगाएं पदार्थ से पर्याप्त ग्रेविटी होने के कारण इस प्रसार के विरुद्ध एक-दूसरे के करीब आ रही हैं। एक समय ऐसा आएगा जब यह सभी 50 आकाशगंगाएं आपस में जुड़कर एक महाविशाल संयुक्त गैलेक्सी को जन्म देंगी... तो वहीं बाहरी ब्रह्मांड धीरे-धीरे इतना दूर जा चुका होगा कि दूरस्थ आकाशगंगाओं से निकला प्रकाश भी हम तक पहुंचने में नाकाम होगा क्योंकि बाहरी ब्रह्मांड और इस महाविशाल गैलेक्सी के बीच मे ब्रह्मांड का प्रसार प्रकाश की गति से भी तेज हो रहा होगा। वर्तमान में हम किसी भी दिशा में लगभग 47 अरब प्रकाशवर्ष दूर तक देख पाने में सक्षम हैं। भविष्य में यह लिमिट 62 अरब प्रकाश वर्ष होगी। अर्थात, 62 अरब प्रकाशवर्ष के परे का ब्रह्मांड हमारे लिए सदैव एक रहस्य ही रहेगा।
.
आज हम ब्रह्मांड के विषय मे जो कुछ भी जानते हैं, उसका एकमात्र सोर्स आसमान में चमकती हुई रोशनियों से आता प्रकाश है। भविष्य में अगर कोई सभ्यता पैदा हुई तो वह कभी नहीं जान पाएगी कि ब्रह्मांड का इतिहास क्या है। सुदूर ब्रह्मांड में मौजूद रिक्तता उन्हें विस्मित करेगी। वे अपनी गैलेक्सी को ही सम्पूर्ण ब्रह्मांड कर जीने के लिए अभिशप्त होंगे, कयास लगाएंगे कि ब्रह्मांड शाश्वत और अपरिवर्तनीय है और कभी यह नहीं जान पाएंगे कि समय ने उनके इतिहास का एक बेहद महत्वपूर्ण पन्ना हमेशा के लिए छीन लिया है।
● ● ●
जब हम कॉस्मिक बैकग्राउंड रेडिएशन का अध्ययन करते हैं तो पाते हैं कि सुदूर ब्रह्मांड की रिक्तता में औसत तापमान अद्भुत रूप से एक समान यानी परम शून्य ताप से थोड़ा ज्यादा, लगभग 2.7 केल्विन है। यह तभी सम्भव है जब पूर्वकाल में ब्रह्मांड के सभी हिस्से एक-दूसरे के फिजिकल कांटेक्ट में रहे हों। पर यह कैसे संभव है?
.
आखिरी बार ब्रह्मांड के सभी कण एक-दूसरे के संपर्क में बिगबैंग के 380000 वर्ष बाद में थे। तब ब्रह्मांड के आकार का व्यास लगभग 9 करोड़ प्रकाशवर्ष था। अब 9 करोड़ प्रकाशवर्ष दूर मौजूद कण आपस मे ऊष्मा का आदान-प्रदान कैसे कर रहे थे जबकि ऊष्मा प्रकाश की चाल से तेज तो चल ही नहीं सकती।
दूसरा...बृहद स्तर पर ब्रह्मांड .004% के मार्जिन वेरिएशन से हर जगह फ्लैट है। यह तभी संभव है जब शुरुआती ब्रह्मांड की फ्लैटनेस One part variation margin in 10^62 रही हो। यह भी बेहद विशाल अंक है। ब्रह्मांड की फ्लैटनेस के प्रति मुग्धता का राज क्या है?
.
इन्फ्लेशन सिद्धांत प्रस्तावित करता है कि अगर मान लो कि बिगबैंग के बाद ब्रह्मांड सेकंड के अरबवें-खरबवें हिस्से के लिए इन्फ्लेशन प्रक्रिया से गुजरा था जिसके तहत ब्रह्मांड शुरुआती चरण में बिगबैंग से 10^-32 सेकंड बीतने तक 10^50 (10 followed by 50 zero) के फैक्टर से द्विगुणित हुआ था तो ऊपर बतायी गई होराइजन प्रॉब्लम अपने-आप हल हो जाती है। तकनीकी डिटेल बता कर आपका वक़्त जाया नहीं करूंगा पर समस्या सॉल्व तो हो जाती है और यह भी तथ्य सामने आता है कि वास्तविक ब्रह्मांड, दृश्य ब्रह्मांड की तुलना में, कम से कम 10 हजार अरब-खरब गुना बड़ा होना चाहिए।
पर इन्फ्लेशन हुआ क्यों? हुआ तो रुक गया क्यों? बिगबैंग से पहले क्या था? बैंग होने का कारण क्या था? ब्रह्मांड एक बेहद सूक्ष्म बिंदु में था तो उस बिंदु के इर्दगिर्द क्या था?
.
कभी-कभी सोचता हूँ कि कहीं ऐसा तो नहीं कि समय के किसी क्रूर चक्र के कारण इतिहास का एक बेहद जरूरी पन्ना हम हमेशा-हमेशा के लिए पहले ही खो चुके हैं?
किसे पता?
नियति का चक्र क्रूर है।
समय का पहिया घूमता है।
संयोग-दुर्योग घटित होते हैं और इतिहास के कुछ महत्वपूर्ण पन्ने सदैव के लिए खो जाते हैं।
.
May be some pages of the history are supposed to be lost forever!!