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ये पेन नही उस जमाने के शौक हुआ करता था ,जब कभी क्लास में कोई लड़की इस कलम से लिखती थी, तो उस समय अपने मन में भी यही भावना रहती थी ,की काश मैं भी इसी पेन से लिखती तो अच्छी राइटिंग बनती,और यही भावना जिद का रूप लेकर के पिता जी से दो चार थप्पड़ लेकर के शांत होता। तब हम लोग भी यही कहते थे की उसके पिता जी उसको ये पेन दिए है आप क्यों नही दे रहे है,तब एक समझौता बनता था कि मैं कल से स्कूल नहीं जाऊंगी, तब मम्मी के हस्तक्षेप के बाद अगले क्लास तक अच्छे नंबरों से पास होने का सुझाव मिलने पर कही बात बनती थी ।