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आधुनिक भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले नहीं बल्कि #बंगाली_कुलीन_ब्राह्मण '#होती_विद्यालंकार\' है.
उनकी संस्कृत व्याकरण, कविता, आयुर्वेद, गणित, स्मृति, नव्य-न्याय, आदि पर अद्वितीय पकड़ थी । इनके ज्ञान से प्रभावित होकर काशी के पंडितों ने इन्हें 'विद्यालंकार' की उपाधि से सम्मानित किया था.
होती विद्यालंकर का जन्म वर्ष 1740 में हुआ था और सन 1810 में इनका निधन हुआ था मतलब यह सावित्रीबाई से बहुत पहले कि हैं। अंग्रेज़ मिशनरि #विलियम_वार्ड ने सन 1811 में प्रकशित अपनी पुस्तक में होती विद्यालंकर का जिक्र करते हुए कहा है कि इनके गुरुकुल में देश भर से छात्र - छात्रएं अध्यन हेतु आती थीं। हर कोई होती का विद्यालंकर नाम से सम्मान करता था।
होती विद्यालंकर के जन्म से कुछ दशक बाद रूप मंजरी देवी का जन्म हुआ था। यह भी बंगाल कि #कुलीन_ब्राह्मण थीं । ये आयुर्वेद की ज्ञाता थीं और कन्याओं के लिए विद्यालय की स्थापना की थीं । इन्हें भी विद्यालंकर उपाधि से सम्मानित किया गया था । सब इन्हें #होतु_विद्यालंकर कहते थें। सन 1875 में इनका निधन हुआ था।
वर्ष 1935 में दिनेश चंद्र सेन ने Greater Bangal : - A social History नाम से पुस्तक लिखे थें। इसमे इन्होंने होती विद्यालंकर और रूप मंजूरी देवी का बंगाल की अन्य विदुषियों के साथ वर्णन किया था।
सावित्रीबाई फुले के विद्यालय को #ईस्ट_इंडिया_कंपनी और #ईसाई_मिशनरियों का समर्थन था। 16 नवम्बर 1852 को अंग्रेज़ो ने सावित्रीबाई को #बेस्ट_टीचर का पुरष्कार दिया था। अंग्रेज़ो का सावित्रीबाई का समर्थन देना और विद्यालय हेतु आर्थिक सहायता करना इसके पीछे सोची समझी चाल थी ।
सावित्रीबाई फुले को प्रथम महिला शिक्षक कहना उतना ही सत्य है जितना जुगनू को सूर्य से अधिक रोशनी वाला कहना सत्य है।