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'रॉकेट्री' की चर्चा क्यों नहीं हुई, यह समझने में किसी 'रॉकेट साइंस' की जरूरत नहीं। पहला गुनाह तो यह कि कांग्रेस-कम्युनिस्ट युति के पाप को सामने लाए, दूसरा अपराध ये कि फिल्म में नमाज की जगह आरती और पूजा दिखाई और गुनाह-ए-अज़ीम ये कि मूवी के अंत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आवाज चला दी।
फिल्म शुरू से अंत तक माधवन की है। कमाल की कहानी, कमाल का लेखन और कमाल का निर्देशन। कहीं से नहीं लगता कि यह उनकी पहली फिल्म है। पूरी फिल्म के दौरान आपको पता चलता है कि कांग्रेस और कम्युनिस्टों ने इस देश को किस कदर बर्बाद किया है। इसरो को 1 करोड़ रुपए नहीं देनेवाली कांग्रेस एक नौसिखिए पीएम और उसकी महिला-मित्र के लिए नेवी का पूरा जहाज बुक कर देती थी, अंदमान और लक्षद्वीप का पूरा इलाका रिजर्व कर देती थी।
एक वैज्ञानिक जो केवल अपने जुनून से भारत को रॉकेट-साइंस में नंबर वन बनाना चाहता है, उसे केरल की भ्रष्ट, घटिया और दो कौड़ी की कांग्रेस-कौमी सरकार साधारण अपराधियों की तरह घसीट कर ले जाती है, उसकी पूरी जिंदगी बर्बाद करती है। वह अपने जुनून और जिद से भले ही अपनी जिंदगी वापस छीन लेता है, लेकिन ...बहुत कुछ खो भी देता है।
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फिल्म के बारे में यही कि ये 'मस्ट वॉच' है और ये कम राहत की बात नहीं कि अब भारत में ऐसी फिल्में बनने लगी हैं।
फिल्म में टेढ़ी नाक वाला हकला खान नहीं भी होता तो भी चलता, है भी तो कोई बात नहीं, क्योंकि उसे फिल्म पूरी तरह खा गई है।
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और अंत में,
मोदीजी से सारी शिकायतें खत्म। भाया, अगर कांग्रेस और कम्युनिस्टों से...या लीगियों से हम बचे हुए हैं तो बाकी सारी चीजें जाए चूल्हे-भाड़ में।
बने रहिए प्रधानसेवक...अगले 10 साल और, कम से कम....
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