3 anni - Tradurre

ट्राली और स्विफ्ट कार की टक्कर में दो सगे भाइयों की मौत

image
Eva James nuovo articolo creato
3 anni - Tradurre

Coursework Help Online | #education #assignment help

Eva James Cambiato la sua copertura del profilo
3 anni

image
Eva James Cambiato la sua copertura del profilo
3 anni

image
Eva James Cambiato l'immagine del profilo
3 anni

image

image

image

image
3 anni - Tradurre

हम विषम से विषम परिस्थितियों में भी सहज रहे।।
कोई हजार वर्ष तपस्या करे, यदि उसका दृष्टिकोण न बदले तो वह वैसे ही रहेगा। जैसा था।
वही उत्तेजना, क्रोध , काम , मोह , पीड़ा , दुख सब कुछ वैसे ही रहेगा।
कुंभ मेले में एक बार शंकराचार्यो में इस पर विवाद हो गया कि कौन गंगा में पहले डुबकी लगायेगा।
प्रशासन को पसीना आ गया, एक का कहना था, उनके पास दो पद है।
सब कुछ वैसे ही यथावत है। बस फिसलन कि देर है, लुढ़क कर कोई भी गिर सकता है।
दृष्टिकोण नहीं बदला है।
अर्जुन , कहता है।
यदि जीवन का उद्धार ही उद्देश्य है। वह ज्ञान , सन्यास से मिल सकता है। मैं भिक्षा मांगकर जीवन निर्वाह कर सकता हूँ। अपने लोगों के वध के पाप से तो बच जाऊँगा। आप स्वधर्म को भी तो महत्व देते है। मैं अपना उद्धार कर लूँगा।
फिर युद्ध कि क्या आवश्यकता है ?
अब अर्जुन के प्रश्न में गलत क्या है ! वह ठीक ही तो कह रहा है।
भगवान यह जानते भी है कि यह ठीक कह रहा है।
लेकिन उनको पता है कि अर्जुन का दृष्टिकोण नहीं बदला है।
यदि दृष्टिकोण ठीक होता तो वह कह देते, ठीक है जाओ।
यह कि मैं सन्यासी बन सकता हूँ,
यह कि मैं योद्धा बन सकता हूँ,
यह कि मैं किसी को मार सकता हूँ,
यह कि मैं विजय पा सकता हूँ,
यह कि कुछ मेरे अपने है,
यह कि मैं कुछ हूँ।
यह सब कुछ, धर्म कि दृष्टि में गलत दृष्टिकोण है।
इन सब के साथ अर्जुन हिमालय भी चला जाय, तो वही रहेगा जो कुरुक्षेत्र में है।
पूरी गीता, अर्जुन सहित हर व्यक्ति के दृष्टिकोण को बदल रही है।
यह बात बहुत मनोवैज्ञानिक है कि आपकी हर प्रतिक्रिया, इससे तय होती है कि आपका दृष्टिकोण क्या है।
किसी भी व्यक्ति पर क्रोध आना, दुखी होना, प्रेम होना ! हवा में नहीं है। यह हमारा दृष्टिकोण तय करता है।
प्रसिद्ध पुस्तक 'Man's search for meaning' के लेखक विक्टर ई फ्रैंकलिन जो एक मनोवैज्ञानिक थे। हिटलर के कैदियों पर काम किया।
उन्होंने लिखा है -
व्यक्ति का जीवन इससे निर्धारित होता है कि कष्ट , पीड़ा, विषम परिस्थितियों में कैसा दृष्टिकोण विकसित करता है।
मुझे पता नहीं है कि फ्रैंकलिन ने गीता पढ़ी थी या नहीं।
पहला श्लोक ही है।
भगवान बोलते है -
कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितां।
इस

image
3 anni - Tradurre

सहमत
यह समाज, जैसा त्रेता , द्वापर में था वैसा ही कलियुग में भी है...
जगदम्बा सीता को लेकर , मर्यादापुरुषोत्तम भगवान की जो कुछ लोग आलोचना करते है।
उनको करना चाहिये।
वह अपनी जगह सही है।
कुछ भी अतिशयोक्ति या अनर्गल नहीं कह रहा हूँ। अध्ययन और चिंतन से मैं यही समझा।
भगवान श्रीरामचन्द्र जी, ज्ञानवान थे। वह जानते थे कि हर युग में बुद्धिहीन, कुंठित लोग होंगें।
राम कि नहीं करेंगे, तो माता सीता कि करेंगें। इसलिये सारा अपयश उन्होंने स्वयं पर ले लिया। सीता जी को इन सब से मुक्त कर दिया।
भगवान राम और सीता जी मे कितना प्रेम है। वाल्मीकि रामायण में वनगमन के 13 वर्ष पढ़िये। वह लोग ऐसे है जैसे कि वन में ही न हो।
एक एक पशु , पंछी, वनस्पति , नदी , पहाड़ को भगवान, सीता जी को बताते है।
देखो सीते, यह गंगा है, गोमती है, नर्मदा है, गोदावरी है।
यह अत्रि का आश्रम है, यह भरद्वाज का आश्रम है, यह कपिल का आश्रम है, यह अगस्त का आश्रम है --।
यह जामुन है, यह आम है, यह चमेली है, यह कमल है ---।
सीता जी ऐसे सब सुनती है, जैसे कोई अबोध बालक जिसे कुछ पता ही न हो।
ऐसा लगता है, राम सीता वन

image