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100 से ज्यादा इनकाउंटर करने वाले अजय पाल शर्मा जी का सहारनपुर में तबादला
जय हो योगी जी..!! 🙏

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वैधानिक चेतावनी: प्रेम और सौहार्द से रहें, जनहित में जारी।

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उल्लू के पठ्ठो जितने देशों ने विरोध किया सब में 45% लड़की के (चाइल्ड मैरिज) 15 से कम उम्र में निकाह हो जाती है।
हजारों विरोध के बाद हाल ही 2020 में मजबूर हो कर सोदी वालो चाइल्ड मैरिज असंवैधानिक घोषित किया।👆

मोहम्मद ओर उसकी गलती अब तक पकड़ कर बैठे हो ओर तुम्हारा अपना दिमाग घास चरने गया है।
मज़हब के लिए इतना भी अन्धे मत बनो की तुम्हे सच्चाई दिखाई न दे।
#saynotoshariyalaw

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हम हमारा इतिहास खुद लिख सकते हैं- #मोटाभाई

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Such people are the cause of communal riots & fights.
He and all of his type of provocatinig mindset should imprisoned till to the death ie, umra kaid.
The more we tolerate the more they create problems.
There should not be any mercy for him

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#शिखा_सूत्र_का_वैदिक_विज्ञान

सिर के ऊपरी भाग को ब्रह्मांड कहा गया है और सामने के भाग को कपाल प्रदेश। कपाल प्रदेश का विस्तार ब्रह्मांड के आधे भाग तक है। दोनों की सीमा पर मुख्य मस्तिष्क की स्थिति समझनी चाहिए।

ब्रह्मांड का जो केन्द्रबिन्दु है, उसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं। ब्रह्मरंध्र में सुई की नोंक के बराबर एक छिद्र है जो अति महत्वपूर्ण है। सारी अनुभूतियां, दैवी जगत् के विचार, ब्रह्मांड में
क्रियाशक्ति और अनन्त शक्तियां इसी ब्रह्मरंध्र से प्रविष्ट
होती हैं। हिन्दू धर्म में इसी स्थान पर चोटी(शिखा) रखने का
नियम है। ब्रह्मरंध्र से निष्कासित होने वाली ऊर्जा शिखा के माध्यम से प्रवाहित होती है ।

वास्तव में हमारी शिखा जहां एक ओर ऊर्जा को प्रवाहित
करती है, वहीं दूसरी ओर उसे ग्रहण भी करती है। वायुमंडल में
बिखरी हुई असंख्य विचार तरंगें और भाव तरंगें शिखा के माध्यम से ही मनुष्य के मस्तिष्क में प्रविष्ट होती हैं। कहने की आवश्यकता नहीं, हमारा मस्तिष्क एक प्रकार से रिसीविंग और ब्रॉडकास्टिंग सेंटर का कार्य शिखारूपी एंटीना या एरियल के माध्यम से करता है। मुख्य मस्तिष्क( सेरिब्रम) के बाद लघु मस्तिष्क(सेरिबेलम) है और ब्रह्मरंध्र के ठीक नीचे अधो मस्तिष्क (मेडुला एबलोंगेटा) की स्थिति है जिसके साथ एक 'मेडुला' नामक अंडाकार पदार्थ संयुक्त है। वह मस्तिष्क के भीतर विद्यमान एक तरल पदार्थ में तैरता रहता है। मेरूमज्जा का अन्त इसी अंडाकार पदार्थ में होता है। यह पदार्थ अत्यन्त रहस्यमय है। आज के वैज्ञानिक भी इसे समझ नहीं सके हैं। बाहर से आने वाली परिदृश्यमान शक्तियां अधो मस्तिष्क से होकर इसी अंडाकार पदार्थ से टकराती हैं और योग्यतानुसार मानवीय विचारों, भावनाओं, अनुभूतियों में
स्वतः परिवर्तित होकर बिखर जाती हैं।

योगसाधना की दृष्टि से मुख्य मस्तिष्क आकाश है। मनुष्य जो
कुछ देखता है, कल्पना करता है, स्वप्न देखता है--यह सारा अनुभव उसको इसी आकाश में करना पड़ता है।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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