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जन्माष्टमी के पुनीत अवसर पर योगिराज भगवान श्री कृष्ण जी की लीला के गूढ़ तत्वों, गहरे अर्थों में उतर सकें तो हमें अपनी आध्यात्मिक चेतना के उत्थान का उज्ज्वल मार्ग स्वत: दिखने लगेगा।
या अनुरागी चित्त की, गति समुझै नहिं कोय। ज्यों ज्यौं डूबे श्याम रँग, त्यौं त्यौं उज्ज्वल होय॥