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चीन , यूरोप में कोरोना का कहर फिर से शुरू हो गया।
चीन पूरी दुनिया का उत्पादन केंद्र है। यदि कोरोना और भी फैलता है तो सभी देशों की अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।
प्रकृति कि मार गहरी होती जा रही है। मार्च के महीने में मई वाली गर्मी पड़ रही है।
दो दिन में ही तापमान ऐसे बढ़ा है कि जैसे ज्वालामुखी फट गया हो।
वृक्ष , नदी , तालाब , जंगल विहीन धरती आग का गोला बन जायेगी।
विकास की परिभाषा फिर से परिभाषित होनी चाहिये।
उसके केंद्र में प्रकृति होनी चाहिये, नहीं तो समस्त मानवता घिस घिस कर मरेगी।।

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भारत की भूमि पर जितने भी विद्वान हुये है।
उनमें सबसे अधिक आदर मैं हस्तिनापुर के महामंत्री विदुर जी का करता हूँ। वह विद्वान के साथ लेखक भी थे। विदुरनीति उनकी रचना है।
वह किस स्तर के विद्वान थे इससे अच्छी तरह से समझा जा सकता है की भगवान श्रीकृष्ण उनको महात्मा कहकर संबोधित करते थे।
लेकिन मेरा कारण कुछ अलग है।
बहुधा यह देखा जाता है , विद्वान , प्रबुद्ध , अभिजात्य लोग तटस्थ रहते है या निरपेक्षता का ढोंग करते है। अपनी कायरता को सिद्धांतो के आवरण में छुपाते है।
परंतु महात्मा विदुर ऐसे विद्वान नहीं थे। वह प्राचीन भारत के सबसे उच्च पद पर आसीन थे।
भरत वंश कि सारी प्रशासनिक शक्ति उनके पास थी। महामंत्री होने के साथ वह समस्त भारत की नीति , व्यवस्था के प्रेणता थे।
वह कभी मौन नहीं रहे।
निडरता , स्पष्टता , धर्मपरायणता के साथ उनकी नीति में अधिकारों की स्प्ष्ट व्याख्या थी।
अपनी युवावस्था में उन्होंने धृतराष्ट्र को आयु में श्रेष्ठ होते हुये भी उत्तराधिकारी के अयोग्य बताया था।
पांडु पुत्रों को अधिकार दिलाने के लिये वह संघर्ष करते रहे। माताकुंती को आश्रय दिये , लाक्ष्यागृह में पांडवों की रक्षा किये।
भीष्म , द्रोण , कृपाचार्य जैसे मनीषियों कि भी आलोचना से हिचके नहीं।
हस्तिनापुर कि राज्यसभा में जँहा रेखायें बिल्कुल स्पष्ट थी कि जो भी दुर्योधन का विरोध करेगा, वह हस्तिनापुर का द्रोही होगा।लेकिन वह द्रोपदी चीरहरण का ऊंचे स्वर में विरोध किये। दुर्योधन को विनाश का नाग, अत्याचारी, भ्र्ष्ट्र तक बोलने में हिचके नहीं।
निष्ठा से उपर कर्तव्य है और कर्तव्य से भी उपर न्याय है।एक नया चिंतन दिया।
यह वह युग है , जब निष्ठा सबसे उच्चतम आदर्श था।
जब उन्हें लगा कि राज्य और राजा उनकी नहीं सुन रहा है तो त्यागपत्र दे दिया।
मैं ऐसी विद्वता , ज्ञान को महत्वपूर्ण समझता हूँ।
अपनी निष्ठा , अपनी छवि के लिये जो मौन है , तटस्थ है वह तो कपटी है।

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