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मेदांता अस्पताल में खड़े हरे कुर्ते वाले सपा प्रवक्ता अनुराग भदौरिया मुस्कुरा क्यों रहे हैं?

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प्रति वर्ष दशहरे के बाद ठीक 21 दिन बाद ही दीपावली क्यों आती है ? क्या कभी आपने इस पर विचार किया है। विश्वास न हो तो कैलेंडर देख लीजिएगा। रामायण में वाल्मिकी ऋषि ने लिखा है कि प्रभु श्री राम को अपनी पूरी सेना को श्रीलंका से अयोध्या तक पैदल चलकर आने में 21दिन (इक्कीस दिन यानी 504 घंटे) लगे!!!!अब हम 504 घंटे को 24घंटे से भाग दें तो उत्तर 21 आता है यानी इक्कीस दिन !!! मुझे भी आश्चर्य हुआ । कुछ भी बताया है यह सोचकर कौतूहल वश गूगल मैप पर सर्च किया। उसमें दर्शाता है कि श्रीलंका से अयोध्या की पैदल दूरी 3145 किलोमीटर और लगने वाला समय 504 घंटे।।। हैं न आश्चर्यजनक बात। वर्तमान समय में गूगल मैप को पूरी तरह विश्वनीय माना जाता है।
लेकिन हम भारतीय लोग तो दशहरा और दीपावली त्रेतायुग से चली आ रही परंपरानुसार मनाते आ रहे हैं।समय के इस गणित पर आपको विश्वास न हो रहा हो तो गूगल सर्च कर देख सकते हैं तथा औरों को भी दीजिए यह रोचक जानकारी।और वाल्मिकी ऋषि ने तो रामायण की रचना श्रीराम के जन्म से पहले ही कर दी थी।!!! उनका भविष्यवाणी और आगे घटने वाली घटनाओं का वर्णन कितना सटीक था। अपनी सनातन हिन्दू संस्कृति कितनी महान है। हमें गर्व है ऐसी महान हिन्दू संस्कृति में जन्म लेने पर।

🙏जय सियाराम जय जय सियाराम 🙏

*जो भी काम करें उसमें "सत्य निष्ठा" हो और यही सच्चा जीवन है। यही राम कथा का सार है।*

*हम हैं राम के*
*राम हमारे हैं!*

*🙏 जय श्री राम 🙏*

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ये देखों राहुल गांधी जी
अडानी ने आपके राजस्थान को भी खरीद लिया 😆

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#naughty #aadwik

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सिरमौर: हिमाचल की पहलवान रानी ने राष्ट्रीय खेलों में सिल्वर पदक जीता 36वीं राष्ट्रीय खेलकूद प्रतियोगिता गुजरात में हो रही है। जिसमें रानी ने कुश्ती के 76 किलोग्राम वर्ग में रजत पदक प्राप्त किया है। रानी का फाइनल में मुकाबला दिल्ली की अर्जुन अवार्डी पहलवान दिव्या कांकरान से हुआ था। रानी हिमाचल प्रदेश पुलिस में सेवाएं दे रही हैं। रानी सिरमौर की रहने वाली हैं।

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*TODAY INDANA MATA DARSHAN*
ये मंदिर राजस्थान की ईडाणा माता मंदिर के नाम से जाना जाता है।
*यहां पर मां के चमत्कारिक दरबार की महिमा बहुत ही निराली है, जिसे देखने दुर-दुर से लोग यहां आते हैं। वैसे तो आपने बहुत सारे चमत्कारिक स्थलों के बारें में सुना होगा, लेकिन इसकी दास्तां बिल्कुल ही अलग और चौंकाने वाली है।*
ये स्थान उदयपुर शहर से 60 कि.मी. दुर अरावली की पहाड़ियों के बीच बसा हुआ है। मां का ये दरबार बिल्कुल खुले एक चौक में स्थित है। आपको बता दें इस मन्दिर का नाम ईडाणा उदयपुर मेवल की महारानी के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
इस मन्दिर में भक्तों की खास आस्था है, क्योंकि यहां मान्यता है की लकवा से ग्रसित रोगी यहां मां के दरबार में आकर ठीक हो जाते हैं।
इस मन्दिर की हैरान करने वाली बात है ये है की यहां स्थित देवी मां की प्रतिमा से हर महीने में दो से तीन बार अग्नि प्रजवल्लित होती है। इस अग्नि स्नान से मां की सम्पूर्ण चढ़ाई गयी चुनरियां, धागे भस्म हो जाते हैं और इसे देखने के लिए मां के दरबार में भक्तों का मेला लगा रहता है।
लेकिन अगर बात करें इस अग्नि की तो आज तक कोई भी इस बात का पता नहीं लगा पाया कि ये अग्नि कैसे जलती है। ईडाणा माता मन्दिर में अग्नि स्नान का पता लगते ही आसपास के गांवों से बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ लग जाती है।
मन्दिर के पुजारी के अनुसार ईडाणा माता पर अधिक भार होने पर माता स्वयं ज्वालादेवी का रूप धारण कर लेती हैं। ये अग्नि धीरे-धीरे विकराल रूप धारण करती है और इसकी लपटें 10 से 20 फीट तक पहुंच जाती है। लेकिन इस अग्नि के पीछे खास बात ये भी है कि आज तक श्रृंगार के अलावा किसी अन्य चीज को कोई आंच तक नहीं आती। भक्त इसे देवी का अग्नि स्नान कहते हैं और इसी अग्नि स्नान के कारण यहां मां का मंदिर नहीं बन पाया।
ऐसा मान्यता है की जो भी भक्त इस अग्नि के दर्शन करता है, उसकी हर इच्छा पूरी होती है। यहां भक्त अपनी इच्छा पूर्ण होने पर त्रिशूल चढ़ाने आते है और साथ ही जिन लोगों के संतान नहीं होती वो दम्पत्ति यहां झुला चढ़ाने आते हैं। खासकर इस मंदिर के प्रति लोगों का विश्वास है कि लकवा से ग्रसित रोगी मां के दरबार में आकर स्वस्थ हो जाते हैं।

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बाल बलिदानी कुमारी मैना
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1857 के स्वाधीनता संग्राम में प्रारम्भ में तो भारतीय पक्ष की जीत हुई; पर फिर अंग्रेजों का पलड़ा भारी होने लगा। भारतीय सेनानियों का नेतृत्व नाना साहब पेशवा कर रहे थे। उन्होंने अपने सहयोगियों के आग्रह पर बिठूर का महल छोड़ने का निर्णय कर लिया। उनकी योजना थी कि किसी सुरक्षित स्थान पर जाकर फिर से सेना एकत्र करें और अंग्रेजों ने नये सिरे से मोर्चा लें।

मैना नानासाहब की दत्तक पुत्री थी। वह उस समय केवल 13 वर्ष की थी। नानासाहब बड़े असमंजस में थे कि उसका क्या करें ? नये स्थान पर पहुंचने में न जाने कितने दिन लगें और मार्ग में न जाने कैसी कठिनाइयां आयें। अतः उसे साथ रखना खतरे से खाली नहीं था; पर महल में छोड़ना भी कठिन था। ऐसे में मैना ने स्वयं महल में रुकने की इच्छा प्रकट की।

नानासाहब ने उसे समझाया कि अंग्रेज अपने बन्दियों से बहुत दुष्टता का व्यवहार करते हैं। फिर मैना तो एक कन्या थी। अतः उसके साथ दुराचार भी हो सकता था; पर मैना साहसी लड़की थी। उसने अस्त्र-शस्त्र चलाना भी सीखा था। उसने कहा कि मैं क्रांतिकारी की पुत्री होने के साथ ही एक हिन्दू ललना भी हूं। मुझे अपने शरीर और नारी धर्म की रक्षा करना आता है। अतः नानासाहब ने विवश होकर कुछ विश्वस्त सैनिकों के साथ उसे वहीं छोड़ दिया।

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आज बारिश होने के उपरांत यह रावण खुशी मनाता देखा गया तो लोगों ने जमकर की लात घूंसो से पिटाई
शाम तक निपट जाने के आसार हैं 🤣

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