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तुम आ जाते हो हर बार और मेरी मूर्ति के सामने तस्वीर खिंचवा कर चले जाते हो।तुमको मेरे चेहरे का तेज,आंखो की चमक और फडकती मूंछे दिखती है।लेकिन क्या तुम्हारी नजर कभी मेरे पैरों के घावों पर पड़ी है?क्या कभी तुमने सोचा है की महलों की मखमली सेज को छोड़कर पत्थरों की राह पर चलना मेरे लिए कितना मुश्किल था।मेरे बेटों के पैर पर कभी मिट्टी नही लगती थी लेकिन मेवाड़ रक्षा के उस संघर्ष पथ पर उनको भी मेरे साथ ठोकर खानी पड़ी।महलों की जनाना जो शान-ओ-शौकत से रहती थी।उनको डग डग पर मेरे संघर्ष का साथी बनना पड़ा।मेरी राह इतनी आसान नही थी।
एक पोस्ट लंबे समय से कॉपी पेस्ट होती आ रही है जिसमें राजपूतों की आलोचना करते हुए लिखा है कि "राजपूतों को अरबों ने हराया, तुर्कों ने हराया, गुलामों ने हराया, खिलजियों ने हराया, तुगलकों ने हराया, लोदियों ने हराया, मुगलों ने हराया, अफगानों ने हराया, अंग्रेजों ने हराया"
ये पोस्ट करने वाले लोग अनजाने में ही राजपूतों की प्रशंसा कर जाते हैं कि हर आक्रांता से लड़ने वाले राजपूत थे, हर हार के बाद दोबारा लड़ने वाले भी राजपूत थे, इतने आक्रमणों का राजपूतों ने सामना किया लेकिन राजपूतों का नाश नहीं हो सका।